अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में क़बीलाई नेताओं की बैठक यानी लोया जिरगा ने अमरीका के साथ होने वाले सुरक्षा समझौते को समर्थन दे दिया है.


इस समझौते में साल 2014 में अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी सैन्य अभियान के समाप्त होने के बाद भी कई हज़ार अमरीकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान में रहने का प्रावधान है.हालाँकि राष्ट्रपति हामिद करज़ई इस समझौते में देरी के पक्ष में हैं.उन्होंने लोया जिरगा में शामिल प्रतिनिधियों से कहा कि जब तक अमरीका अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित नहीं करेगा वे तब तक इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे.वहीं अमरीका ने कहा है कि समझौते में "देरी करना न तो व्यावहारिक है और न ही संभव."इस द्वीपक्षीय सुरक्षा समझौते को लागू करवाने के लिए इसे अफ़ग़ानिस्तान की संसद से भी पारित करवाना होगा.समझौते के तहत अफ़ग़ानिस्तान में 15 हज़ार अमरीकी सैनिक 2014 के बाद भी रह सकते हैं.'जल्दबाज़ी'तालिबान ने जिरगा में शामिल बुज़ुर्गों पर हमला करने की धमकी दी है. बैठक स्थल के इर्द-गिर्द बेहद कड़ी सुरक्षा है.


काबुल में मौज़ूद बीबीसी संवाददाता केरेन एलन के मुताबिक़ ज़्यादातर बुज़ुर्ग इस समझौते पर एक महीने के भीतर ही हस्ताक्षर चाहते हैं.लोया जिरगा के अध्यक्ष सिबग़तउल्लाह मोजाद्देदी ने कहा है कि यदि इस साल के अंत तक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुए तो वे अपने पद से इस्तीफ़ा देकर अफ़ग़ानिस्तान छोड़ देंगे.

अमरीका चाहता है कि इस समझौते पर इस साल के अंत से पहले ही हस्ताक्षर हो जाना चाहिए ताकि अमरीका साल 2014 के बाद अफ़ग़ानिस्तान में रुकने वाले अमरीकी बलों के बारे में अपनी योजनाएं सुरक्षित कर सके.अमरीकी गृह मंत्रालय के प्रवक्ता जेन साकी ने कहा, "समझौता न होने से जो अनिश्चितता पैदा होगी उसके कारण इसे और टालना न हमारे लिए संभव है और न ही व्यवहारिक."लोया जिरगा स्थल पर सुरक्षा व्यवस्था के बेहद कड़े इंतज़ाम किए गए हैं.तालिबान ने इस जिरगा को अमरीकी योजना का हिस्सा क़रार देते हुए इसमें शामिल बुज़ुर्गों को ढूंढने और उनसे बदला लेने की धमकी दी है.

Posted By: Subhesh Sharma