देवऋषि नारद क्यों रह गए अविवाहित? इस कथा से जानें उनके हमेशा भ्रमण करने का कारण
नारायण-नारायण करने वाले नारद जी को अविवाहित रहने का श्राप मिला था। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार, देवलोक का दूत कहे जाने वाले देवऋषि नारद, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक नारद जी एक लोक से दूसरे लोक की परिक्रमा करते हुए सूचनाओं को प्रेषित करते थे।
मिला था अविवाहित रहने का श्रापआज हम आपको बता रहे हैं वैसे तो नारद मुनि को कई बार प्रेम हुआ पर फिर भी किसी से भी नहीं हुई उनकी शादी, इसका कारण था उनके पिता द्वारा अविवाहित होने का श्राप मिलना। ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्मखण्ड में एक कहानी का उल्लेख मिलता है, जिसमें नारद को उनके पिता ब्रह्मा से आजीवन अविवाहित रहने का श्राप मिला था।ये है कथा
इस कहानी के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तो उनके चार पुत्र हुए। वो तपस्या पर निकल गए। इसके बाद बारी आई नारद मुनि की। नारद स्वभाव से चंचल थे। नारद मुनि से ब्रह्मा ने कहा, ‘तुम सृष्टि की रचना में मेरा सहयोग करो और विवाह कर लो। उन्होंने अपने पिता को मना कर दिया। अपनी अवेहलना सुनकर ब्रह्मा बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप देते हुए कहा, तुम जीवन में कई बार प्रेम का अनुभव करोगे लेकिन तुम चाहकर भी कभी विवाह नहीं कर पाओगे। तुम जिम्मेदारियों से भागते हो इसलिए तुम्हें पूरी दुनिया में केवल भाग-दौड़ ही करनी पड़ेगी। इस तरह नारद को श्राप मिल गया और वो युगों-युगों तक एक लोक से दूसरे लोक में विचरण करते रहे।
राजा दक्ष ने दिया था भटकते रहने का श्रापएक दूसरे श्राप की वजह से नारद जी को हमेशा इधर-उधर भटकते रहना पड़ा। कहते हैं राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति ने 10 हजार पुत्रों को जन्म दिया था। सभी पुत्रों को नारद जी ने मोक्ष का पाठ पढ़ा दिया, जिससे उनका मन मोह-माया से दूर हो गया। फिर दक्ष ने पंचजनी से विवाह किया और उनके एक हजार पुत्र हुए। इन पुत्रों को भी नारद जी ने मोह माया से दूर रहना सीखा दिया। इस बात से क्रोधित होकर दक्ष ने नारद जी को श्राप दे दिया कि वे हमेशा इधर-उधर भटकते रहेंगे।-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी पूजा के दौरान आप भी तो नहीं करते हैं ये 5 गलतियां, बनेंगे पाप के भागी
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