The combination of an over-the-hill Govinda over-the-top Javed Jaffrey stiff-as-a-stick Mahakshay Chakraborty and a decidedly deadpan Suniel Shetty isn’t the one to leave you rolling on the floor with uncontrollable laughter.

सुनील शेट्टी ने ये वादा किया है कि वे दोबारा कोई फिल्म प्रोड्यूस नहीं करेंगे. कुछ देर तक लूट फिल्म देखने के बाद पता लग जाएगा कि उन्होंने ये डिसीजन
क्यों लिया. पिछले कुछ सालों से उनका ये प्रोजेक्ट रुका हुआ था और अब जब ये सबके सामने आया है तो पता लगता है कि इसमें वेट करने जैसा कुछ भी नहीं था. इसे मसालेदार कॉमिक स्टोरी बताया जा रहा था लेकिन ये नीरस और फीकी सी हौच-पौच फिल्म है.


ये फिल्म 2003 में आई हॉलीवुड फिल्म क्राइम स्प्री से काफी इंस्पायर लगती है जिसमें कुछ लडक़ों की गैंग अपने आस-पास की चीजों को सुलझाते हुए खुद क्राइम में उलझ जाता है. लेकिन लूट में शायद ही कुछ ऐसा है जो सही हो, तब भी नहीं जब वे थाइलैंड में पैसा लूटते हैं.


कुछ रीसेंट हिंदी फिल्मों की तरह इसमें भी चार हीरोज हैं पंडित (गोविंदा), बिल्डर (शेट्टी), अकबर (जाफरी) और विल्सन (चक्रवर्ती) जो एक साथ चोरी करने के लिए मिलते हैं जिससे ये सब पटटया पहुंच जाते हैं. गलत पहचान होने की वजह से ये लोग किसी दूसरे को अटैक कर देते हैं जिससे गड़बड़ी होने लगती है और फिल्म में कुछ और कैरेक्टर्स अपनी एंट्री करते हैं जैसे वाइरस (मीका) और लाला (प्रेम चोपड़ा).


फीमेल ब्रिगेड के पास ज्यादा कुछ नहीं है फिल्म में करने को जिनमें तान्या (भारद्वाज) और एसएमएस (शर्मा) हैं. दोनों के फिल्म में शो-पीस की तरह हैं.
गोविंदा और जावेद जाफरी ठहाके लगवाना तो दूर लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाने में भी कामयाब नहीं हो पाते. फिल्म के अधिकतर डायलॉग्स या तो डबल मीनिंग हैं या फिर राइमिंग. जैसे पटाया... किसको पटाया? विल्सन फ्रॉम बान्द्रा पर शायद इसका मतलब सान्द्रा फ्रॉम बान्द्रा होगा. स्टोरी, परफॉरर्मेंस और स्क्रिप्ट पर जितना कम बोला जाए उतना ही अच्छा है.

Posted By: Garima Shukla