Uttarakhand Loksabha Election 2019: जानिए मतदान का समय व इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां
कानपुर। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तराखंड की इन पांच सीटों मेटिहरी गढ़वाल, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल-उधमसिंह नगर और हरिद्वार पर मतदान होगा। यहां बीजेपी कांग्रेस ने जबरदस्त प्रत्याशियों को उतारा है। वोटिंग सुबह सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक चलेगा। वर्षों के आंदोलन के बाद साल 2000 में उत्तर प्रदेश से निकलकर उत्तराखंड राज्य बना था। 2000 से 2006 तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य से लोकसभा के लिए 5, राज्यसभा के लिए 3 और विधानसभा के लिए 71 सदस्य चुने जाते हैं। इस समय राज्य में त्रिवेंद्र सिंह रावतके नेतृत्व में भाजपा की सरकार है। राज्य की सीमाएं उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश से लगी हुई हैं। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। टिहरी गढ़वाल
टिहरी लोकसभा क्षेत्र टिहरी, उत्तरकाशी व देहरादून जनपद की 14 विधानसभा सीटों को मिलकर बना है। धार्मिक और ऐतिहासिकता को लेकर इस सीट का अपना महत्व है। इस लोकसभा क्षेत्र में लाखमंडल, गंगा का उद्गम स्थल गोमुख, गंगोत्री, यमुनोत्री धाम तथा दुनियां का आठवां सबसे बड़ा टिहरी बांध स्थित हैं। स्वामी रामतीर्थ की तप स्थली और श्रीदेव सुमन की कर्मस्थली टिहरी ही रही है। लोकसभा सीट की सीमा भारत-चीन सीमा से लगी है। टिहरी राज्य का आजादी के बाद भारत में विलय होने के बाद भी लोस चुनाव में राजशाही का दबदबा रहा। 10 आम चुनावों में राजशाही परिवार के सदस्य ही सांसद चुने गए। नौ बार यह सीट कांग्रेस, छह बार भाजपा व एक बार जनता दल के पाले में रही। इस सीट की जनसंख्या 1923454 (2011) और साक्षरता दर 78.2 फीसद है।
वीरों की धरती है गढ़वाल संसदीय सीट। बावन गढ़ों वाली यह सीट हिंदुओं के पवित्र तीर्थ बद्रीनाथ से शुरू होकर पवित्र धाम केदारनाथ के साथ ही सिक्खों के पवित्र हेमकुंड साहिब से होते हुए मैदान की ओर उतरती है और तराई में रामनगर व कोटद्वार पहुंचकर समाप्त होती है। हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज नेता देने वाली इस सीट पर 1991 से लेकर अब तक भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व रहा है। दसवें लोकसभा चुनाव से लेकर 2014 में संपन्न 16वें लोकसभा चुनाव तक मात्र दो बार यह सीट भारतीय जनता पार्टी के हाथों से फिसली है। 1996-1998 के दौरान ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) से और 2009-2014 के बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सतपाल महाराज इस सीट पर विजयी रहे, जबकि 1998 से अब तक भुवनचंद्र खंडूरी पांच बार यहां से सांसद चुने जा चुके हैं। सातवीं लोकसभा चुनाव में गढ़वाल संसदीय सीट उस वक्त काफी चर्चा में रही, जब हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस का दामन छोड़ जनता पार्टी (सेक्यूलर) से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इससे पूर्व, पहले लोकसभा से चौथे लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस के भक्तदर्शन इस सीट से सांसद रहे, जबकि पांचवें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रताप सिंह नेगी इस सीट से सांसद रहे थे। 1977 में जनता पार्टी के जगन्नाथ शर्मा इस सीट से सांसद बने। 1984 में कांग्रेस (आई) और 1989 में जनता दल से चंद्रमोहन सिंह नेगी लगातार दो बार इस सीट से सांसद बने। 14-वीं लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए टीपीएस रावत इस सीट से सांसद बने।
चीन और नेपाल के साथ-साथ गढ़वाल सीमा से सटी चार जिलों में फैली अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट अपने अलग मिजाज के लिए जानी जाती है। यहां काली, गोरी, पूर्वी व पश्चिमी रामगंगा, सरयू, कोसी नदियों वाले क्षेत्र में हिमालय का भू-भाग भी है। वर्ष 1977 में इस सीट से भाजपा के दिग्गज नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी ढाई साल तक इसका प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इसके अलावा पूर्व सीएम हरीश रावत तीन बार इस क्षेत्र के सांसद रहे। हालांकि वर्ष 1991 से यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। भाजपा के जीवन शर्मा एक बार और बची सिंह रावत तीन बार यहां के सांसद चुने गए। सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद भी भाजपा और कांग्रेस ही आमने-सामने रहे। वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रदीप टम्टा सांसद चुने गए तो वर्ष 2014 से भाजपा के अजय टम्टा सांसद हैं।