हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में नोटा के इस्तेमाल ने बड़े सियासी दलों के सूरमा प्रत्याशियों को भी शिकस्त दिलाई है। ऐसे में यह कयास लगाए जाने लगे कि लोकसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हाल होने वाला है।


- हर चुनाव में बढ़ती जा रही नोटा दबाने वालों की तादाद- पांच राज्यों के चुनाव में नोटा के इस्तेमाल ने बिगाड़ा गणित- इस बार आरक्षण विरोधी संगठनों ने चलाई नोटा की मुहिमashok.mishra@inext.co.in


LUCKNOW:  हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में नोटा के इस्तेमाल ने बड़े सियासी दलों के सूरमा प्रत्याशियों को भी शिकस्त का सामना करने को मजबूर कर दिया तो यह कयास लगाए जाने लगे कि लोकसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हाल होने वाला है। अपनी पसंद का कोई प्रत्याशी न होने पर नोटा दबाने के अधिकार का प्रयोग तमाम लोग बखूबी करने लगे हैं जिसकी वजह से हर चुनाव में नोटा दबाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। करीब छह साल के अपने सफर में नोटा कई बड़े दलों के आंखों की किरकिरी बन चुका है। वहीं वादे पूरे न करने वाले सियासी दलों और नेताओं के खिलाफ जनता का एक ऐसा हथियार बना है जो उनको सबक सिखाने के काम आता है।कई दलों के वोट से ज्यादा

यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान करीब 7.58 लाख लोगों ने नोटा के अधिकार का इस्तेमाल किया था। इसकी तादाद कई दलों को मिले कुल वोट से ज्यादा थी। बहराइच की मटेरा विधानसभा सीट में सपा प्रत्याशी यासर शाह ने भाजपा प्रत्याशी पर 1595 वोटों से जीत दर्ज की थी जबकि नोटा दबाने वालों की संख्या 2717 थी। इससे साफ हो गया कि नोटा की वजह से कई बार प्रत्याशियों को अप्रत्याशित हार का सामना भी करना पड़ता है। इसी तरह मोहम्मदाबाद गोहना सीट पर भाजपा प्रत्याशी ने बसपा उम्मीदवार को मात्र 538 वोटों से हरा दिया था। वोटों की गिनती में पाया गया कि 1945 लोगों ने नोटा के अधिकार का इस्तेमाल किया। राजनैतिक दलों को हैरत में डाल दिया वहीं मुबारकपुर में बसपा प्रत्याशी 688 वोटों से जीता जबकि यहां 1628 लोगों ने नोटा पर वोट किया था। वहीं श्रावस्ती में जीत का अंतर 445 था जबकि नोटा पर 4289 वोट पड़े थे। डुमरियागंज में 171 वोटों से हार-जीत तय हुई जबकि नोटा का इस्तेमाल 1611 लोगों ने किया। राजधानी के मोहनलालगंज सीट पर सपा प्रत्याशी अंबरीश सिंह पुष्कर ने बसपा प्रत्याशी रामबहादुर को 530 वोटों से हराया जबकि यहां 3471 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। ऐसा ही हाल यूपी की कई अन्य सीटों पर भी हुआ था। हर सीट पर नोटा दबाने वालों की संख्या ने राजनैतिक दलों को हैरत में डाल दिया था।

हर चुनाव में बढ़ रहा इस्तेमाल

नोटा का इस्तेमाल हर चुनाव में बढ़ता जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में करीब 6 लाख वोटर्स ने नोटा का विकल्प चुना तो सियासी दलों के नेताओं की धड़कनें बढ़ गयी। यह संख्या विधानसभा चुनाव में बढ़कर 7.58 लाख पहुंच गयी। इससे साफ हो गया कि ज्यादातर राजनैतिक दल ऐसे उम्मीदवार देने में नाकाम हैं जो जनता की उम्मीदों पर खरा उतरें। यही वजह है कि चुनाव दर चुनाव नोटा दबाने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यूपी में एक रिटायर आईएएस तो बाकायदा नोटा का इस्तेमाल करने की मुहिम चला रखी है।विकास है बड़ा मुद्दादरअसल नोटा दबाने वालों की पहली शिकायत उनके क्षेत्र का विकास न होना रहती है। इसे लेकर लोग संगठित रूप से चुनाव के दौरान प्रत्याशियों का बहिष्कार भी करते हैं और नोटा का इस्तेमाल कर अपने आक्रोश का इजहार करने से नहीं चूकते। इस बार लोकसभा चुनाव में आरक्षण विरोधी संगठनों ने नोटा दबाने की मुहिम चला रखी है। अब देखना यह है कि यह कितनी कारगर साबित होती है। वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को नोटा दबाने की वजह माना गया था।
- 2013 में पहली बार नोटा के इस्तेमाल को मिली थी अनुमति- 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 6 लाख लोगों ने नोटा दबाया- 2015 में बिहार के विधानसभा चुनाव में नोटा सिंबल का इस्तेमाल- 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 7.58 लाख लोगों ने दबाया नोटा

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Posted By: Shweta Mishra