सपा नेता मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने शुक्रवार को चुनावी रैली में एक साथ मंच साझा किया।


- मुलायम ने आखिरी चुनाव लडऩे का ऐलान कर सबको चौंकाया- मुलायम ने मायावती के वारिस आकाश को दिया आशीर्वाद- मुलायम के ऐलान से यूपी की सियासत के एक युग का अंतlucknow@inext.co.inLUCKNOW: मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के समर्थन में आयोजित रैली के मंच पर तीन कुर्सियां डाली गयी तो लोगों के मन में पहला सवाल आया कि आखिर बीच की कुर्सी पर कौन बैठेगा। चंद मिनटों में मंच पर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आए और बीच की कुर्सी पर मायावती विराजमान हो गयीं। मैनपुरी से कई बार सांसद और तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह उनके बांयी तरफ तो अखिलेश यादव दाहिनी ओर बैठे। इससे एक बार यह फिर साफ हो गया कि गठबंधन की स्टीयरिंग सीट पर बसपा सुप्रीमो का ही कब्जा है।


गेस्ट हाउस से मैनपुरी तक

मुलायम सिंह यादव को सामान्य शिष्टाचार निभाने वाला नेता माना जाता है। जनता के अलावा सभी दलों के नेताओं के साथ उनके मधुर संबंधों की वजह से ही उनके समर्थक उनको धरतीपुत्र के नाम से भी बुलाते है। मुलायम और मायावती के बीच गेस्ट हाउस कांड ने जो तल्खी बढ़ाई थी वह आज मैनपुरी में मिटती नजर आई। इससे पहले भी विधानसभा में मुलायम सिंह यादव ने बतौर मुख्यमंत्री मायावती का अभिवादन करने की परंपरा को कायम रखा, शायद यही वजह है कि मैनपुरी में लंबे अर्से के बाद जब दोनों नेता एक मंच पर नजर आए तो उनके हाव-भाव में तल्खी न होकर एक-दूसरे का सम्मान करने की ललक थी। हालांकि मुलायम को मंच पर बीच में बैठाने की कसक उनके समर्थकों में जरूर रही। यहां बताते चलें कि मुलायम राजनीति में पचास साल से ज्यादा वक्त से सक्रिय हैं जबकि मायावती का सियासी सफर महज तीन दशक पुराना है। एक युग का होगा अंत

मुलायम द्वारा रैली में अपना आखिरी चुनाव लडऩे का ऐलान उनके समर्थकों को निराश करने वाला है। सूबे में मुफ्त पढ़ाई, सिंचाई और दवाई की शुरुआत करने वाले मुलायम ने करीब तीन दशक पहले लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में सपा की स्थापना की तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हर चुनाव में उनकी लोकप्रियता के साथ सीटों का इजाफा होता गया और एक दौर ऐसा भी आया जब वर्ष 2012 के चुनाव में सपा को स्पष्ट बहुमत मिला। मुलायम ने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया जिसका विरोध परिवार में हुआ पर उनका इरादा नहीं बदला। ऐसे फैसले लेने वाले नेता का आखिरी चुनाव लडऩे का ऐलान सपा का झकझोरने वाला और पार्टी को नये सिरे से संगठित करने का इशारा करने वाला है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मुलायम की निष्क्रियता से सपा ने सबसे खराब प्रदर्शन किया था।लखनऊ समेत इन सीटों पर पार्टियों ने उतारे पैराशूट प्रत्याशी, जीत सकेंगे चुनावी बाजीलोकसभा चुनाव 2019 : वोट के लिए भूल बैठे सबका सम्मान, नेताजी की जुबान तो बेलगामकिसी से नहीं विरोधमुलायम को ऐसा नेता भी माना जाता है जो किसी से लंबे समय तक नाराज नहीं रह सकता। यही वजह है कि सपा में तमाम कद्दावर नेताओं का आना-जाना लगा रहा पर मुलायम से उसके संबंध बरकरार रहे। सपा में रार के दौरान भी दोनों खेमे के नेता बेधड़क मुलायम से मिलने जाते नजर आते रहे। मैनपुरी में रैली के दौरान मुलायम ने मायावती के भतीजे आकाश आनंद को आशीर्वाद देकर अपनी इस खूबी का फिर से परिचय दिया। वहीं मायावती को बार-बार धन्यवाद देकर गेस्ट हाउस कांड की सारी कड़वाहट भी खत्म कर दी।

Posted By: Shweta Mishra