Lok Sabha Election Result 2019 : सात लाख से ज्यादा वोट पाने वाले पहले गैर मंदिर के प्रत्याशी बने रवि किशन
- अब तक सीएम योगी आदित्यनाथ ने ही भारी मतों से हासिल की थी जीत
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GORAKHPUR : लोकसभा चुनाव 2019 कई मायने में खास रहा, तो इसमें कई नए इतिहास भी रचे गए. खास होने की वजह यह कि मंदिर से यहां कोई प्रत्याशी बीजेपी के टिकट पर मैदान में नहीं था लेकिन रवि किशन जैसा स्टार चुनावी समर में किस्मत आजमाने के लिए उतरा था. रवि किशन, जिन्हें शहरवासी पहले पैराशूट उम्मीदवार बता रहे थे, उसे ही शहर के सात लाख से ज्यादा लोगों ने सिर आंखों पर बिठाया और उसके पक्ष में पोलिंग की. वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ के बाद रवि किशन ही एक ऐसे कैंडिडेट हैं, जिन्होंने करीब तीन लाख वोटों से जीत हासिल करने में कामयाबी पाई है. इससे पहले 2014 के लोकसभा इलेक्शन में सीएम योगी आदित्यनाथ ने सपा की राजमति निषाद को 3 लाख 12 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी.
गोरखपुर लोकसभा सीट की बात करें तो 1937 से हिंदू महासभा की राजनीति कर रहे महंत दिग्विजयनाथ ने पहला आम चुनाव भी लड़ा, लेकिन 1951 में पहले आम चुनाव में दो सीट्स गोरखपुर साउथ और गोरखपुर वेस्ट से संसदीय चुनाव लड़े महंत दिग्विजयनाथ को कामयाबी नहीं मिल सकी. 1962 में उन्होंने गोरखपुर संसदीय सीट से फिर जोर आजमाईश की, लेकिन इस बार भी वह नाकाम रहे. 1967 में वह हिंदू महासभा से चुनाव जीतने में सफल रहे. 1967 के संसदीय चुनाव में जनता ने महंत दिग्विजयनाथ के फेवर में जमकर मतदान किया और उन्हें ससंद तक पहुंचाया. महंत दिग्विजयनाथ को 121490 मत मिले, कांग्रेस कैंडिडेट एसएल सक्सेना 78775 वोट हासिल कर सके. लेकिन महंत दिग्विजयनाथ यह कार्यकाल पूरा न कर सके.
1971 में फिर खिसकी सीटमहंत दिग्विजयनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद 1969 में इस सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा. उनकी जगह उनके उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ चुनाव मैदान में आए और सांसद चुन लिए गए. 1971 के आम चुनाव में महंत अवेद्यनाथ को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस प्रत्याशी नरसिंह नारायण पांडेय 136843 मत पाकर कामयाब हुए. महंत अवेद्यनाथ 99265 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे. इस हार के बाद महंत अवेद्यनाथ ने संसदीय राजनीति से दूरी बनाते हुए विधानसभा का रुख कर लिया. वह मानीराम से आधा दर्जन बार विधायक रहे. 1989 से मंदिर का अजेय कब्जा1989 में महंत अवेद्यनाथ एक बार फिर गोरखपुर संसदीय चुनाव लड़े. जनता दल की लहर चल रही थी और भाजपा भी जनता दल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही थी. महंत अवेद्यनाथ ने अखिल भारतीय हिंदू महासभा से चुनाव लड़ने का फैसला किया और लहर के बाद भी संसद तक पहुंचने में कामयाब रहे. महंत अवेद्यनाथ को 193821 वोट मिले. जनता दल के रामपाल सिंह 147984 वोट पाकर दूसरे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी व निवर्तमान सांसद मदन पांडेय तीसरे स्थान पर रहे. 1989 के इस चुनाव के बाद तो गोरखपुर संसदीय सीट पर गोरखनाथ मंदिर का कब्जा अजेय हो गया.
1998 में योगी बने उत्तराधिकारी1991 में हुए चुनाव में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतरे और आसानी से जीत हासिल की. 1992 व 1996 में भी गोरखपुर के सांसद महंत अवेद्यनाथ ही चुने गए. 1996 के बाद महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से संन्यास ले लिया. 1998 में उन्होंने यह सीट अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को सौंप दी. योगी आदित्यनाथ पहली बार चुनाव मैदान में थे. 1998 में योगी को जीत हासिल हुई. 1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे, तो वह सबसे कम उम्र के सांसद थे. योगी आदित्यनाथ 26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने थे. इसके बाद हुए संसदीय चुनाव का परिणाम योगी आदित्यनाथ के फेवर में रहा.
2017 में योगी ने छोड़ी थी सीटयोगी आदित्यनाथ 1998 के बाद 1999, 2004, 2009 और 2014 का चुनाव लगातार जीतकर पांच चुनाव लगातार जीतने वाले गोरखपुर के पहले सांसद बने. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. निर्विरोध निर्वाचित होकर सीएम योगी एमएलसी बने. इसी के साथ उन्होंने संसद सदस्य के पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद यह सीट खाली हुई. जिसके बाद 11 मार्च को इस सीट पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ और 14 मार्च को काउंटिंग हुई, जिसमें बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा. मगर आम चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के कैंडिडेट ने परचम लहराया है.