लोकसभा चुनाव 2019: देहरादून में चुनाव का तनाव दूर करने के लिए उम्मीदवार ले रहे हैं उल्टी गिनती का सहारा
- इलेक्शन कैंपेन का बिजी शेड्यूल और जनादेश की चिंता इलेक्शन लड़ रहे कैंडिडेट्स को दे रही टेंशन
- कैंडिडेट्स टेंशन रिलीज करने के लिए साइकोलॉजिस्ट्स से ले रहे एडवाइस - साइकोलॉजिस्ट्स दे रहे रिवर्स काउंटिंग कर ब्रीदिंग कंट्रोल और मेडिटेशन की टिप्स dehradun@inext.co.inDEHRADUN: लोकसभा इलेक्शन में अपना भाग्य आजमा रहे कैंडिडेट्स इन दिनों प्रचार-प्रसार में जान झोंके हुए हैं. इलेक्शन जीतने और साख बचाने की चिंता उनके टेंशन की वजह बन रही है और कई तो डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में वे साइकोलॉजिस्ट्स की शरण में जाकर टेंशन रिलीज करने के तरीके पूछ रहे हैं. हालांकि व्यस्तता के कारण एडवाइस फोन कॉल पर ही ली जा रही है. साइकोलॉजिस्ट्स द्वारा उन्हें रिवर्स काउंटिंग और मेडिटेशन की एडवाइस दी जा रही है.एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से टेंशन
ज्यादा टेंशन में वे कैंडिडेट्स हैं, जो पहले एमपी रहे हैं और दोबारा मैदान में हैं. ऐसे में उन्हें एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी टेंशन दे रहा है. उनके बीते कार्यकाल का काम-काज को देखकर पब्लिक कसौटी पर कसेगी, ऐसे में जिनका कार्यकाल उल्लेखनीय उपलब्धियों भरा नहीं रहा वे इस बार जनादेश को लेकर ज्यादा टेंशन में हैं.
एक्जिट पोल भी करता है परेशान
अधिकतर एक्जिट पोल प्रत्याशियों को परेशान कर देता है. जो कि कई प्रत्याशियों को काफी नेगेटिविटी की ओर ले जाता है. ऐसे में उनका आत्म-विश्वास कम होने लगता है नजीता टेंशन और डिप्रेशन के रूप में सामने आता है.
कैंडिडेट्स अपनी टेंशन रिलीज करने के लिए साइकोलॉजिस्ट से संपर्क साथ रहे हैं. इलेक्शन कैंपेन के कारण बिजी शेड्यूल के चलते वे साइकोलॉजिस्ट को विजिट तो नहीं कर पा रहे लेकिन फोन कॉल पर उनसे सलाह जरूर ले रहे हैं. साइकोलॉजिस्ट्स उन्हें टेंशन से निजात पाने के लिए रिलेक्सेशन थैरेपी जैसे मेडिटेशन और रिवर्स काउंटिंग के ब्रीदिंग कंट्रोल की एडवाइस दे रहे हैं.नेताजी के लिए ये टिप्स - शेडयूल बनाकर काम करें.- अंतिम समय में कुछ भी नया करने से बचें.- खुद में आत्मविश्वास रखें.- लोगों के रवैये को सकारात्मक तरीके से लें.- एक्जिट पोल के नतीजों से तनाव न लें.- रिवर्स काउंटिंग करते हुए ब्रीदिंग रेगुलेट करें.- पर्याप्त नींद लें.- रिलेक्सेशन टेक्निक अपनाएं.
इन लक्षणों को पहचानें
नींद नहीं आने, भूख नहीं लगने जैसी फर्स्ट स्टेज पर खुद ही सोचें, ऐसा क्यों हो रहा है. खुद को समय दें लेकिन तब भी कुछ समझ न आए तो परिवार से डिसकस करें. इसके बाद भी कोई हल न निकले तो साइकोलॉजिस्ट्स के पास जाएं.