कब्र और कब्रिस्‍तान मे जाने से पहले लोग सैकड़ों बार सोचते हैं पर एक जगह ऐसी भी है जहां कब्र और कब्रिस्‍तान मे खेलना छोटे बच्‍चों की आदत हो गई है। हब बात कर रहे हैं एक ऐसे स्‍कूल की जो कब्रिस्‍तान के बीचोबीच बना हुआ है। यहां बच्चे इन्हीं के साथ खेलते खाते और पढ़ते हैं वह भी एक शव नहीं सैकड़ों शवों के बीच वो अपनी जिंदगी के दिन गुजार रहे हैं।


कब्रिस्तान मे करते हैं बच्चे पढ़ाईझारखंड के लोहरदगा जिला के किस्को प्रखंड क्षेत्र के कोचा गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है जो कब्रिस्तान में है। कब्रिस्तान में स्कूल होने के कारण इस स्कूल के सभी बच्चे अपना ज्यादातर वक्त शवों के साथ गुजारते हैं। बच्चे इन्हीं के बीच खेलते-कूदते और पढ़ाई करते हैं। इतना ही नहीं बच्चों को दोपहर मे खाना भी कब्रिस्तान में शवों के बीच ही खाना होता है। इस स्कूल के पास एक कमरे के अलावा अपना कुछ भी नहीं है। बच्चे स्कूल की चौखट से जब भी जमीन पर अपना कदम रखते हैं तो इनके कदम शवों के बीच रखते हैं। शवों के साथ रोजाना उठना-बैठना अब इन बच्चों के लिए आम बात है। जब कभी यहां शव दफनाए जाते हैं तो स्कूल की पढ़ाई ठप रखनी पड़ती है। स्कूल के पास नही है पर्याप्त जगह
स्कूल के पास पर्याप्त जगह ना होने के चलते हर क्लास के बच्चे एक साथ ही पढ़ते हैं। जगह के साथ यहां शिक्षकों की भी भारी कमी है। बच्चे अपनी क्लास और सिलेबस के अनुसार पढाई नही करते हैं उन्हे वही पढ़ना होता है जो शिक्षक उन्हे पढ़ाते हैं। कब्रिस्तान में स्कूल के मामले को लेकर जिला शिक्षा अधीक्षक रेणुका तिग्गा भी कुछ करने मे असमर्थ है। ग्रामीण रेहान टोप्पो बताते हैं कि यहां का कब्रिस्तान काफी पुराना है। कोचा बरनाग सहित आसपास के कई गांवों के बच्चे इसी कब्रिस्तान के महौल में पढ़कर आज विभिन्न स्थानों में कार्यरत है। टीचर अनुसन्ना तिर्की बताती हैं कि ऐसे समय दो शिक्षकों के साथ 89 छात्रों को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है। जब तक शव दफनाने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती बच्चे कमरे से बाहर नही निकल सकते हैं।

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Posted By: Prabha Punj Mishra