पाकिस्तान: शराब है कि कमबख़्त छूटती ही नहीं...
फ्लैट के अंदर एक बार है जहां कई तरह की शराब परोसी जा रही है. चमकती-दमकती रोशनी के बीच दर्जनों लोग हंस रहे हैं, नाच रहे हैं और शराब के मज़े ले रहे हैं.ये उन पार्टियों में से है जो पाकिस्तान के शहरों में आम बात है लेकिन गुपचुप तरीके से होती हैं.शराब, अवैध शराब बेचने वालों से ख़रीदी जाती है या उन दुकानों से जो सिर्फ़ अल्पसंख्यकों को शराब बेचने के लिए अधिकृत हैं, लेकिन बड़ी तादाद में मुसलमानों को भी बेचती हैं.पाकिस्तान में शराब कारखाने भी हैं, जहाँ शराब का उत्पादन सिर्फ़ ग़ैरमुस्लिमों या निर्यात करने के लिए होता है.पाकिस्तान में शराब पीने की संस्कृति पाकिस्तान के "ड्राई" देश के दर्जे को झूठा बताती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 96% आबादी मु्सलमान है और वो शराब नहीं पी सकते.
ताहिर अहमद कहते हैं, "दुर्भाग्य है कि पाकिस्तान में शराब शौकिया नहीं बल्कि दुनिया से भागने और राहत पाने के लिए पी जाती है. मतलब जब तक बोतल खाली नहीं हो जाती तब तक पीयो."'महिलाओं के लिए मना है'रईसों में शराब पीना खास तौर पर देखा जा सकता है. अफ़वाहों के मुताबिक कई बड़े नेता शराब पीते हैं और कई आयोजनों में शराब परोसी जाती है लेकिन ये बात कभी कैमरे पर रिकॉर्ड नहीं हुई.लेकिन इसका असर सब पर पड़ता है. पिछले महीने कराची में कम से कम 12 लोगों की मौत घर में बनी ज़हरीली शराब पीने से हुई.पाकिस्तान में शराब पीने वालों में कुछ महिलाएं भी हैं. उनके लिए इसे ज़्यादा बड़ा कलंक माना जाता है.लाहौर में सारा नाम की एक महिला - जिनका नाम बदल दिया गया है - अपनी कहानी बताती हैं.पाँच साल पहले जब वो 33 साल की थी उनका तलाक हो गया. फिर उन्होंने शराब पीने की आदत पड़ गई.वो कई दिन तक शराब पीती रहतीं और बेहोश हो जाती.वो कहती हैं, "मैं उठती और मुझे याद ही नहीं होता कि पिछले 2-3 दिन कैसे बीते क्योंकि मैं इतने नशे में होती थी. इसने मुझे बहुत डरा दिया."
जब ये बात फैली और वो अपने दो बच्चों के लिए शर्मिंदगी की वजह बन गई वो एक नशामुक्ति केंद्र जाना चाहती थी लेकिन एक महिला के लिए पाकिस्तान में ये बहुत मुश्किल है."मुझे नामों की परवाह नहीं. अगर वो किसी समस्या के बारे में बात करते हैं तो सिर्फ़ उन्हें इससे फ़ायदा नहीं होता बल्कि जो सुन रहा है उसे भी फ़ायदा होता है. जो चीज़ मायने रखती है वो ये है कि समस्या पर बात हो रही है."-डॉक्टर फ़ैसल मम्सा, मनोचिकित्सकवो कहती हैं, "कुछ मर्द कह सकते हैं कि 'ठीक है, मुझे एक दिक्कत है.' लेकिन एक महिला के लिए ये कलंक है. एक महिला कभी ये नहीं कह सकती कि मुझे ये दिक्कत है और मदद चाहिए. ये मंज़ूर नहीं है."नौ महीने पहले, उन्होंने आख़िरकार 'थेरैपी वर्क्स' से मदद मांगी और घर पर ही इलाज लिया. अब वो उबर रही हैं.'इलाज का सख़्त तरीका'कुछ ऐसे क्लीनिक भी हैं जिनका इलाज का तरीका कुछ ज़्यादा सख्त है.'विलिंग वेज़' नाम के एक क्लिनिक में बीबीसी पहुंचा. यहां लोग परिवार की सहमति से भर्ती होते हैं लेकिन ये अंदाज़ा नहीं होता कि उन्हें तीन महीने वहीं रहना होगा.
वहां रहने के दौरान उन्हें सभी तरह की नशीली चीज़ों जैसे तंबाकू से दूर रखा जाता है. और बाहरी दुनिया से संपर्क काट दिया जाता है.यहां के एक पूर्व मरीज़ ने बीबीसी से संपर्क किया और कहा कि उन्हें लगता है कि यहां कुछ ज़्यादा ही सख्ती होती है.
एक महिला कहती है कि उनके पति 13 साल से पी रहे हैं लेकिन वो उन्हें इसके लिए मदद लेने को नहीं कह सकती. डॉक्टर उन्हें सलाह देते हैं कि वो 'अल्कॉहलिक्स एनॉनिमस' से बात करें.डॉक्टर मम्सा कहते हैं कि रेडियो पर पहचान ज़ाहिर न होना इस मसले के लिए आदर्श बात है.उनका कहना है, "मुझे नामों की परवाह नहीं. जो चीज़ मायने रखती है वो ये है कि समस्या पर बात हो रही है."पाकिस्तान के आधिकारिक "ड्राई" दर्जे के निकट भविष्य में बदलने की संभावना नहीं है.कम से कम अब शराब पीने वाले आगे आ रहे हैं और इस बारे में बात कर रहे हैं - और कुछ अपनी मुसीबत से निकलने की राह पा रहे हैं.