समलैंगिकता को भारत में कानूनी रूप से वैध करार दिया गया है। दुनिया में ऐसे 13 देश हैं जहां समलैंगिक संबंध अवैध है और वहां इसके लिए मौत की सजा मिलती है।


कानपुर। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में पांच जजों की बेंच ने एक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को कानूनी रूप से वैध करार दिया है। पांच जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि लेस्बियन गे बाइसेक्शुअल ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय को भी सामान्य नागरिकों की तरह ही अधिकार प्राप्त है। मानवता सर्वोपरी है और हमें एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जा सकता है। बता दें कि दुनिया में 13 देश ऐसे हैं, जहां समलैंगिक संबंध अवैध है और वहां इसके लिए लोगों मौत सजा की मिलती है।समलैंगिक संबंध पर मौत की सजा सुनाने वाले देश


इंडिपेंडेंट न्यूज के अनुसार, जिन देशों में समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है, उनमें सूडान, ईरान, सऊदी अरब, यमन, मॉरिटानिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, नाइजीरिया के कुछ हिस्से, सोमालिया के कुछ हिस्से, सीरिया के हिस्से और इराक के कुछ हिस्सों का नाम शामिल है। इन देशों में समलैंगिक संबंध पर मौत की सजा सुना दी जाती है।ये है धारा 377

बता दें कि आईपीसी 1861 के मुताबिक, धारा 377 यौन संबंधों उन गतिविधियों को अपराध माना गया है जिन्हें कुदरत के खिलाफ या अप्राकृतिक माना जाता है। इसमें समलैंगिक संबंध भी शामिल हैं। जुलाई 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में दो बालिगों के सहमति से समलैंगिक संबंध को इस धारा के तहत अपराध नहीं माना था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस फैसले को संसद के हवाले सौंप दिया था। इसके बाद 6 फरवरी, 2016 को नाज फाउंडेशन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पीटिशन दाखिल कर दी। तब सीजेआई दीपक ठाकुर की अगुआई वाली एक तीन जजों की बेंच ने इस मामले से जुड़ी सभी आठ क्यूरेटिव पीटिशन को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को रेफर कर दिया था। 

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Posted By: Mukul Kumar