Lalita Pawar Birthday Special: बिग स्क्रीन की 'दुष्ट सास' जब बनीं टीवी पर रामायण की 'मंथरा', कभी निभाए ग्लैमरस किरदार
कानपुर। Lalita Pawar Birthday Special: ललिता पवार की पहचान किसी जमाने में कामयाब अदाकारा की रही। वक्त के साथ खल भूमिकाओं में उन्होंने अपने लिए अलग पहचान बनाई। शायद यही वजह थी कि जब रामानंद सागर की रामायण में मंथरा का पात्र उन्होंने निभाया तो वह लोगों के जेहन में लंबे समय के लिए दर्ज हो गया। सिल्वर स्क्रीन पर निर्दयी सास की भूमिका को उन्होंने ऐसा निभाया कि हिंदी पट्टी की मांएं मनाती थीं कि उनकी बेटियों को ससुराल जाने के बाद ऐसी सास न मिले।
ऐसे हुई फिल्मी करियर की शुरुआतद इंडिपेंडेंट के लिए एक लेख में कुलदीप सिंह ललिता पवार के फिल्मों में आने का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि पुणे में एक साइलेंट मूवी की शूटिंग चल रही थी, अंबा शगुन उनका बचपन का नाम, बागीचे की चाहरदीवारी पर चढ़कर उसे फिल्माए जाते हुए देख रही थी। तभी डायरेक्ट़र की नजर उन पर पड़ी और उसने उन्हें फिल्म में रोल दे दिया। उनके करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट आर्य महिला से हुई।
ग्लैमरस किरदारों से मिली शुरुआती पहचानललिता पवार का जन्म साल 1916 में हुआ, साल 1935 में दैवी खजाना में उनका ग्लैमरस रूप नजर आया। चतुर सुंदरी में उन्होंने एक ही फिल्म में 17 भूमिकाएं निभाई थीं। इसी बीच उन्होंने फिल्म मेकर गणपतराव पवार से शादी कर ली, हालांकि बाद में दोनों का तलाक हो गया। इसके कुछ समय बाद उन्होंने एक अन्य, फिल्म मेकर राज कुमार गुप्ता से शादी की।
गाल पर तमाचा और थम गया करियर शूटिंग के दौरान सेट पर हुए हादसे ने उनके करियर पर विराम लगा दिया। साल 1948 में जंग ए आजादी के सेट पर सीन की शूटिंग के दौरान हीरो भगवान दादा ने उनके गाल पर इतना जोरदार तमाचा जड़ा की उनकी बाईं आंख के पास की एक नस फट गई। इससे उबरने में उन्हें तीन साल लगे बहरहाल उन्होंने गुमनामी में खोने की बजाय अपने करियर को नई दिशा दे दी। वक्त के साथ बतौर कैरेक्टेर आर्टिस्ट उन्हें जो भूमिकाएं मिलीं उसमें उन्होंने जान फूंक दी। चरित्र भूमिकाओं में छोड़ी छापदुर्घटना के बाद उन्होंने चरित्र भूमिकाएं निभानी शुरू कीं। वी शांताराम ने साल 1950 में उन्हें दहेज फिल्म में दुष्ट सास की भूमिका सौंपी। नेशनल हेरल्ड में इकबाल रिजवी लिखते हैं, इस फिल्म से उनकी ऐसी छवि बनी जो भारतीय सिनेमा में इतिहास बन गई। दहेज में दुष्ट और कठोर दिल वाली सास की भूमिका के बाद वह हिंदी सिनेमा की ऐसी सास बन गईं जिसकी कोई बराबरी नहीं थी। उनका निधन 24 फरवरी, 1998 को पुणे में हुआ।