स्पेन का टोमाटीना फेस्टिवल बेहद मशहूर है. इसमें हर साल 20 हज़ार लोग हिस्सा लेते हैं और एक दूसरे को टमाटर के रंग में रंग डालते हैं.
इसमें हिस्सा लेने के लिए दुनिया भर से पर्यटक पहुंचते हैं. इस फेस्टिवल का रोमांच बीबीसी संवाददाता शालू यादव को भी इसमें हिस्सा लेने से रोक नहीं पाया.इस उत्सव में भाग लेने का रोमांच और उससे जुड़े अपराध बोध के बारे में पढ़िए.शालू यादव का ब्लॉग, विस्तार सेजब मैं टोमाटीना फेस्टिवल में हिस्सा लेने की योजना बना रही थी, उस वक्त जयपुर की एक सब्ज़ी मंडी से 75 किलो टमाटरों पर डाका पड़ने की खबरें आ रही थी. मैं 400 लोगों की एक ऐसी मंडली के साथ हो चली जो ख़ास टोमाटीना में हिस्सा लेने के लिए स्पेन जा रही थी. इनमें ज़्यादातर अमरीकी, ऑस्ट्रेलियाई और न्यूज़ीलैंड के पर्यटक थे.फेस्टिवल की एक रात पहले सबके चेहरों पर उत्साह देखते ही बनता था.
ऑस्ट्रेलिया से आई सारा से मैंने पूछा कि उसे दूसरों पर टमाटर फेंकने का आइडिया कैसा लगा तो वो हंसते हुई बोली, "मुझे ये पागलपन पसंद है. अगर कोई चीज़ महंगी हो तो उसे बर्बाद करने का अलग ही मज़ा है. हमें महंगी चीज़ों पर इतना निर्भर होने की ज़रूरत क्या है? मेरे हिसाब से तो हर महंगी चीज़ को यूं ही बर्बाद कर उसकी झूठी महत्ता को ख़त्म किया जा सकता है."
वैसे इस फेस्टिवल के शुरू होने की कहानी भी गुदगुदाने वाली है.कहा जाता है कि साल 1945 में बुन्योल में कुछ किशोरों ने लड़ाई-लड़ाई में एक दूसरे पर टमाटर फेंकने शुरू कर दिए और ये लड़ाई पुलिस के आने तक नहीं रूकी.पुलिस की गिरफ्त से तो वे छूट गए, लेकिन अगले साल उसी तारीख को उन्होंने ये ‘लड़ाई’ दोबारा लड़ी जिसके बाद से ये एक सालाना फेस्टिवल बन गया.हालांकि स्पेन की सरकार ने इसे कई बार अवैध घोषित किया लेकिन लोगों ने हार नहीं मानी और इस फेस्टिवल को कानूनी रूप दिलवाने के लिए कई धरने दिए.
जबकि ये टमाटर ख़ास इस फेस्टिवल के लिए दक्षिण स्पेन में उगाए जाते हैं और इन्हें खाने लायक नहीं माना जाता.इऩ लाल, रसीले टमाटरों से खेलते हुए मेरे मन में अपराध बोध का प्रेत फिर जागा.मैं इन स्वादिष्ट टमाटरों को भला बर्बाद कैसे कर सकती हूं? लेकिन इन्हें अपनी मुट्ठी में भर अपनी मां के लिए भारत भी तो नहीं ले जा सकती.
Posted By: Satyendra Kumar Singh