कुंभ 2019 : आस्था और व्यवस्था का ऐसा चमत्कार
कानपुर। कल्पना कीजिए - मनुष्यों की लहर दर लहर, प्रत्येक रंग, प्रत्येक आकार, प्रत्येक भाषा बोलने वाले लोग बैलगाड़ी से लेकर प्राइवेट जेट तक हर प्रकार के वाहन से यहां पहुंचते हैं। आखिर किसलिए? यहां खेलकूद की किसी गतिविधि का आयोजन नहीं होता, जिसमें कोई बड़े उत्साह से अपनी घरेलू टीम को प्रोत्साहित करे और फिर जीतने पर शैंपेन के साथ जश्न मनाए. यहां रॉक संगीत का कार्यक्रम भी नहीं होता, जिसमें कोई पॉप गायकों तक पहुंचने का प्रयास करे और उनके साथ अपनी पसंदीदा धुनें गुनगुनाए. यहां कोई लॉटरी नहीं निकलती, जिसमें लाखों डॉलर का ईनाम हो। यहां तरह-तरह के झूलों से युक्त कोई मैदान भी नहीं है, जिनका कोई आनंद ले और बच्चे जिसे देखकर खुशी से चीखें...
पवित्र नदी में स्नान, ध्यान और प्रार्थना करने का ज्योतिषीय महत्व
तो फिर इसमें ऐसा क्या है, जो यह दुनिया के इतिहास में किसी अन्य कार्यक्रम की अपेक्षा सबसे अधिक लोगों को अपनी ओर खींचता है? यह पूर्ण रूप से आस्था है। एक सुंदर, पवित्र, विशिष्ट भारतीय विश्वास कि इस शुभ घड़ी में मां गंगा, मां यमुना और मां सरस्वती के पावन जल में स्नान करने से आध्यात्मिक मोक्ष और पूर्व जन्म में किए अपने पापों से मुक्ति पाने में मदद मिलती है। यह विश्वास है, एक अखंड और प्रबल विश्वास कि इससे हम परमात्मा के करीब आएंगे, आध्यात्मिक रूप से जागृत होंगे और शायद हमें ज्ञान की प्राप्ति होगी। ये खिलाड़ी या रॉक गायक या डॉलर या रुपए नहीं हैं, जो लोगों को कुंभ की ओर आकर्षित करते हैं। यह चमक-दमक या यश पाने या फिर किसी प्रसिद्ध शख्सियत को देखने का मौका भी नहीं है। यह पवित्र साधुओं के सानिध्य में रहने, उनके दर्शन करने, उनका आशीर्वाद पाने और उनके सत्संग में शामिल होने का अवसर है। कुछ निश्चित दिनों में इस पवित्र नदी में स्नान, ध्यान और प्रार्थना करने का ज्योतिषीय महत्व है। यह उत्साह ही नहीं, बल्कि उत्सुकता भी है, जिसके चलते लाखों-करोड़ों भारतीय अपनी जिंदगी की सुख-सुविधाओं, आराम और विलासिता व जीवनशैली को छोडकऱ यहां आते हैं और जमीन पर बने तंबुओं में ठहरते हैं और इस दौरान उनकी आंखों में सिर्फ कृतज्ञता व समर्पण के आंसू होते हैं।
खुद से पहले दूसरों को भोजन कराना
भारत वो भूमि है, जहां अन्न पहले दूसरों को खिलाया जाता है और बाद में खुद ग्रहण किया जाता है। कुंभ इस सांस्कृतिक सिद्धांत को और भी निर्मल बनाता है। आप जहां भी जाते हैं, कुंभ के एक छोर से दूसरे तक, अलग-अलग संप्रदाय और परंपरा के बावजूद सबको भोजन मिलता है। शिविर दर शिविर प्रत्येक दिन हजारों लोगों को खाना खिलाया जाता है। उनके श्रद्धालु, यात्री और सेवक सूर्योदय से पहले उठकर खुद पूरियों के एक के बाद एक घान तलते हैं।
कुंभ में बने शिविरों रहते हैं आर्कषण का केंद्र
कुंभ मेले में लगे हमारे शिविरों में कई न्यूज चैनल यह आग्रह करते हुए लगातार आते हैं कि हम उन्हें पर्यावरण-अनुकूल बांस और जूट से बनाए गए कमरों, उससे लगे स्नानघर, शौचालय, नलों से आने वाले पानी और बिजली का वीडियो बनाने दें। 'कुंभ में क्या व्यवस्था है, यह उनका मुख्य विषय होता है और वे इस आयोजन से बेहद प्रभावित हैं। हालांकि कुंभ, व्यवस्था के बारे में नहीं है। कुंभ आस्था के बारे में है। दुनिया के प्रत्येक कोने से लोग यहां फ्लश शौचालयों या लगातार आने वाले पानी या फर्श पर बिछे गलीचों से आकर्षित होकर नहीं आते हैं। यह सुगमता से चल रहे यातायात या उस चमत्कारिक बुनियादी ढांचे के बारे में भी नहीं है, जो राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा तैयार किया जाता है। ये व्यवस्थाएं तो महज अतिरिक्त लाभ हैं, मात्र अप्रत्याशित सुविधाएं।
वास्तविक चमत्कार व्यवस्था का नहीं, आस्था का है
हां, जैसा लोग कह रहे हैं, कुंभ व्यवस्था का चमत्कार जरूर है। न्यूयॉर्क, पेरिस और लंदन के आकार को मिलाकर उसके बराबर एक शहर का निर्माण करना, वो भी साठ दिनों के अंदर सच में एक चमत्कार ही है, जिसका श्रेय केंद्र व राज्य सरकार और जिला प्रशासन को जाता है। हालांकि यहां वास्तविक चमत्कार व्यवस्था का नहीं, आस्था का है। आप दुनिया में कहीं भी सडक़ों का निर्माण, पानी का इंतजाम और बिजली की व्यवस्था कर सकते हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि लोग वहां जाएंगे। कुंभ का चमत्कार तो आस्था, विश्वास है, जो लोगों के मन में गहराई तक पहुंचता है, उनके दिलों को जकड़ता है, उन्हें अपनी ओर खींचता है और अपने घर की सुख-सुविधाओं से दूर, कभी-कभी हजारों मील, मेले के आध्यात्मिक सुख की ओर ले आता है। यह आस्था का चमत्कार है, जिसने प्रत्येक तंबू, प्रत्येक शिविर, प्रत्येक कण या मार्ग को लोगों से भर दिया है।
कुंभ का चमत्कार तो आस्था, विश्वास है, जो लोगों के मन में गहराई तक पहुंचता है, उनके दिलों को जकड़ता है। कुंभ पवित्र साधुओं के सानिध्य में रहने, उनके दर्शन करने, उनका आशीर्वाद पाने और उनके सत्संग में शामिल होने का अवसर है। कुंभ दुनिया के इतिहास में किसी अन्य कार्यक्रम की अपेक्षा सबसे अधिक लोगों को अपनी ओर खींचता है।
साध्वी भगवती सरस्वती, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश