कुंभ 2019: अनोखी है अखाड़ों की दुनिया, आसान नहीं है महामंडलेश्वर बनने की राह
निरंजनी अखाड़े में जब पांच वर्ष की उम्र के बालक को ब्रह्मचारी बनाया जाता है तो अखाड़े के वेद विद्यालयों में उन्हें वेद, पुराण व सनातन धर्म की शिक्षा में पारंगत किया जाता है। 18 वर्ष की उम्र पूरी करने के बाद उन्हें नागा संन्यासी बनाया जाता है। लेकिन यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह नागा संन्यासी बनेगा या फिर उच्च शिक्षा के लिए कहीं बाहर जाना चाहता है।
अखाड़े के दस चार मड़ी दिगंबर गंगानंद गिरी बताते हैं कि हमारे अखाड़े में सज्जनता, विन्रमता और सदाचार का पाठ ब्रह्मचारी बालकों को पढ़ाया और व्यवहारिक रूप से समझाया जाता है। ब्रह्मचारी जीवन के 13 वर्षों के दौरान बालक को ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर अपने वेद विद्यालय के परिसर और गौशाला की साफ-सफाई करना होता है। इस कार्य के बाद ब्रह्मचारी को अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना होता है।
आचार्य महामंडलेश्वर सबसे बड़ा पदश्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में सनातन परंपरा के अनुसार, आचार्य महामंडलेश्वर का पद सबसे बड़ा माना गया है। इसके लिए अखाड़े में उम्र की कोई बाध्यता नहीं है।आचार्य महामंडलेश्वरअखाड़े की सर्वोच्च परिषद धर्म के सभी नियमों का पालन करने, शास्त्रों में पारंगत जैसे अनुभव का परीक्षण करती है। जरूरी नहीं है कि दस वर्ष के ब्रह्मचारी को धर्म के नियमों का पालन करने का ज्ञान व शास्त्रों में पारंगत हो। इसका परीक्षण करते समय अगर परिषद संतुष्ट हो जाते है तो ब्रह्मचारी को भी आचार्य महामंडलेश्वर बना सकती है।महामंडलेश्वरआचार्य महामंडलेश्वर के बाद अखाड़े में दूसरा सबसे बड़ा पद महामंडलेश्वर का होता है। इसके लिए भी परिषद सर्वसम्मति से निर्णय करती है कि संबंधित महात्मा या साध्वी को विद्वता के आधार पर मनोनयन किया जाए। लेकिन महामंडलेश्वर बनाए जाने से पहले संबंधित महात्मा या ब्रह्मचारी या फिर साध्वी का पट्टाभिषेक समारोह आयोजित किया जाता है।श्रीमहंतमहामंडलेश्वर पद के बाद अखाड़े में तीसरा व अंतिम पद श्रीमहंत का होता है। इस पद के मनोनयन के लिए श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के अध्यक्ष के पास अधिकार सुरक्षित रहता है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी कहते हैं कि उनके अखाड़े में आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर व श्रीमहंत तीनों पदों का औचित्य सनातन समय से रहा है। उसी परंपरा का निवर्हन अब तक किया जा रहा है। वेद विद्यालयों में पढ़ने वाले बालकों को सबसे पहले ब्रह्मचारी बनाया जाता है। आगे उसकी इच्छा पर निर्भर करता है वह नागा संन्यासी बने या अखाड़े से बाहर जाकर स्वयं की दुनिया में जाना चाहता है।शाही स्नान के साथ कुंभ महापर्व 2019 का आगाज, जानें कल्पवास का महत्व और उसके 21 नियम जानें क्या है कुंभ महापर्व, इसके पीछे की वह घटना जिसे सबको जानना चाहिए