एक गाँव जो 190 साल से है वीरान
रात की बात तो दूर दिन में भी कोई अकेला इंसान खंडहर बन चुके घरों में घुसने से डरता है।ऐसी मान्यता है कि पालीवाल ब्राह्मणों ने कुलधरा और जैसलमेर के चारों और 120 किलोमीटर इलाक़े में फैले 83 अन्य गांवों को लगभग 500 सालों तक आबाद किया था।इन पालीवाल ब्राह्मणों ने 1825 में गाँव छोड़ते समय शाप दिया था कि इस जगह जो भी बसेगा नष्ट हो जाएगा.पालीवालों के 5,000 परिवारों ने उस समय के जैसलमेर रियासत के दीवान सालिम सिंह के अत्याचारों से परेशान होकर गाँव छोड़ा।सालिम सिंह ने दो जैसलमेर राजाओं मूलराज और गज सिंह के समय दीवान के तौर पर काम किया। सालिम सिंह ने पालीवालों के करों और लगान में इतनी बढ़ोतरी कर दी कि उनका व्यापार और खेती करना मुश्किल हो गया।
वो कहते हैं कि गज सिंह के पहले दो साल के शासन (1820-21) में ही 14 लाख रुपये की सम्पत्ति अर्जित की गई।पालीवाल ब्राह्मण उस समय की सिंध रियासत (अब पाकिस्तान में) और दूसरे देशों से पुराने सिल्क रूट से अनाज, अफीम, नील, हाथी दांत के बने आभूषण और सूखे मेवों का ऊँटों के कारवां पर व्यापार करते थे। इसके अलावा वे कुशल किसान और पशुपालक थे।
जैसलमेर पर दो पुस्तकें लिखने वाले स्थानीय इतिहासकार नन्द किशोर शर्मा कहते हैं, 'पालीवाल सिंह के अत्याचारों से दुखी थे लेकिन अपने गाँवों को छोड़ने का फैसला उन्होंने तब किया जब सालिम सिंह ने उनकी एक लड़की पर बुरी नज़र डाली। सिंह की पहले से सात बीवियां थीं।'
पारानोर्मल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के गौरव तिवारी जो 17 से ज़्यादा बार कुलधरा और खाबा जा चुके हैं, बताते हैं कि उन्होंने वहां अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर आत्माओं की उपस्थिति दर्ज की। लेकिन जैसलमेर विकास समिति के द्वारपाल पद्माराम इसका ज़ोरदार खंडन करते हैं।राजस्थान सरकार ने कुलधरा की इमारतों के नवीनीकरण और मरम्मत के लिए 4 करोड़ रुपये दिए हैं।