जानें कैसे चुने जाते हैं भारत के राष्‍ट्रपति निर्वाचन के लिए कितना चाहिए वोटराष्‍ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों लोक सभा राज्य सभा तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं यानी विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। हम आप को भारत के राष्‍ट्रपति निर्वाचन की कठिन प्रक्रिया को आसान शब्‍दों में बताने जा रहे हैं।


राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक योग्यताएँभारत का कोई नागरिक जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वो एक राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार हो सकता है। राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए और सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करना चाहिए। परन्तु निम्नलिखित कुछ कार्यालय-धारकों को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की अनुमति दी गई है। जिनमें वर्तमान राष्ट्रपति, वर्तमान उपराष्ट्रपति, किसी भी राज्य के राज्यपाल, संघ या किसी राज्य के मंत्री। राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी किसी भी विवाद में निर्णय लेने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को है।राष्ट्रपति के पास होती है ये ताकत


भारत के राष्ट्रपति संघ के कार्यपालक अध्यक्ष हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 52 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित है। वह सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी होता है। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध एवं शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश के प्रथम नागरिक है। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में रहते हैं। जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम कितनी भी बार पद पर रह सकते हैं। अधिकतम की कोई सीमा तय नही हैं।सिंगल ट्रांसफरेबल वोटइस चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है। जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। यानी वोटर एक ही वोट देता है लेकिन वह तमाम कैंडिडेट्स में से अपनी प्रायॉरिटी तय कर देता है। यानी वह बैलट पेपर पर बता देता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन। यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्थावोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है। दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग होता है। यह वेटेज जिस तरह तय किया जाता है उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं। वोटों की गिनती

राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्ट्रपति वही बनता है जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे। यानी इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वोट यानी वेटेज पाना होगा।प्रायॉरिटी का महत्वसांसद या विधायक वोट देते वक्त अपने मतपत्र पर बता देते हैं कि उनकी पहली पसंद वाला कैंडिडेट कौन है, दूसरी पसंद वाला कौन और तीसरी पसंद वाला कौन है। सबसे पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहली वरीयता के मत गिने जाते हैं। यदि इस पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए जरूरी वेटेज का कोटा हासिल कर ले तो उसकी जीत हो गई। लेकिन अगर ऐसा न हो सका तो फिर एक और कदम उठाया जाता है। रेस से बाहर करने का नियमसेकंड प्रायॉरिटी के वोट ट्रांसफर होने के बाद सबसे कम वोट वाले कैंडिडेट को बाहर करने की नौबत आने पर अगर दो कैंडिडेट्स को सबसे कम वोट मिले हों तो बाहर उसे किया जाता है। जिसके फर्स्ट प्रायॉरिटी वाले वोट कम हों। अगर अंत तक किसी प्रत्याशी को तय कोटा न मिले तो भी इस प्रक्रिया में कैंडिडेट बारी-बारी से रेस से बाहर होते रहते हैं और आखिर में जो बचेगा वही विजयी होगा।

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Posted By: Prabha Punj Mishra