यूपी के विकास की रफ्तार को बढ़ाएगा वित्त मंत्री अरुण जेटली का आम बजट 2018
सामाजिक सुरक्षा सबसे अहम
दरअसल आम बजट में सबसे आकर्षक योजना 'नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन' स्कीम है। करीब दस करोड़ लोगों तक पहुंचने वाली इस योजना का अधिकांश हिस्सा आबादी के मुताबिक यूपी को मिल सकता है।इसी तरह किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए रबी के साथ खरीफ की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना भुगतान उनकी तरक्की की राह खोलेगा।इससे पूरे प्रदेश के किसानों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।हर तरह की फसल का एमएसपी तय करने से यूपी के किसानों की आर्थिक हालत सुधरेगी।प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के जरिए हर घर में गैस-चूल्हा सरकार की लोकप्रियता को बढ़ाने वाला कदम साबित हो सकता है।इसी तरह बिजली का मुफ्त कनेक्शन देने की योजना का सबसे बड़ा फायदा यूपी को मिलना तय है।ईज ऑफ डूइंड बिजनेस और मुद्रा योजना का फायदा भी यूपी के नौजवान सबसे ज्यादा उठाएंगे।वहीं आवास योजना और शौचालयों के निर्माण से यूपी के गांवों की हालत भी सुधरेगी।इंफ्रास्ट्रक्चर को लगेंगे पंख
बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर भी खासा ध्यान दिया गया है लिहाजा यूपी को इसका बड़ा फायदा मिलना स्वाभाविक है।सूबे की तमाम सड़कों के विस्तार और नई सड़कों के निर्माण में अब पैसों की कमी आड़े नहीं आएगी।प्रदेश को आठ नये मेडिकल कॉलेज मिलेंगे जिससे भविष्य में स्वास्थ्य सेवाओं में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल सकता है।इससे सूबे में डॉक्टरों की कमी को भी पूरा करने में मदद मिलेगी।जल्द ही योगी सरकार भी अपना बजट पेश करेगी जिसमें आम बजट की छवि देखने को मिल सकती है।वहीं इंवेस्टर्स समिट की सफलता से सूबे के विकास की रफ्तार भी तेज होने की उम्मीद है.विपक्ष के निशाने पर मध्यम वर्ग बजट के सियासी पहलू की बात करें तो केंद्र की भाजपा सरकार ने गरीबों के लिए खजाने के द्वार खोलकर विपक्ष की मुश्किलें बढ़ा दी है।हालांकि मध्यम वर्ग के प्रति बेरुखी ने विपक्ष को वापसी का एक मौका भी दिया है। यूपी में नौकरीपेशा लोगों छोटे कारोबारियों की संख्या खासी ज्यादा है जिसमें से लाखों सरकारी कर्मचारी भी हैं।टैक्स स्लैब में कोई बदलाव न होने से अब मध्यम वर्ग विपक्ष के निशाने पर होगा।अगला लोकसभा चुनाव दूर नहीं है लिहाजा वर्तमान बजट को लेकर विपक्ष ने हमले तेज कर दिए है और भाजपा को चुनाव के दौरान किए गये वादों की याद दिलाई जा रही है।यूपी से भाजपा के 73 सांसद हैं और बजट के बाद उन्हें केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की सफलता के आधार पर ही अपना राजनीतिक भविष्य तलाशना होगा।