47 बरस तक रेडियो सीलोन पर हर सुबह बजते रहे केएल सहगल के गीत
कुंदन लाल सहगल का जन्म जम्मू में हुआ। उनके पिता अमरचंद जम्मू कश्मीर के राजा के तहसीलदार थे। संगीत की ओ सहगल का झुकाव अपनी मां केसर बाई की वजह से हुआ जो बेहद धार्मिक और संगीत प्रेमी महिला थीं।
मां ही सहगल को ऐसी गैदरिंग में लेकर जाती थीं जहां शास्त्रीय संगीत पर आधारित भजन कीर्तनों का आयोजन होता था। यहीं से केएल की संगीत की प्राथमिक शिक्षा हुई, पर उन्होंने संगीत की कोई विधिवत शिक्षा कभी प्राप्त नहीं की।
केवल प्रारंभिक शिक्षा के बाद सहगल ने स्कूल छोड़ दिया और मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर टाइमकीपर की नौकरी कर ली। उसके बाद वे कानपुर आये और यहां चमड़े के कारोबारियों के यहां नौकरी की, यहां गजल की महफिलें लगाने वाले सहगल 'चमड़ा बाबू' के नाम से फेमस हो गए। यहीं एक नामी तवायफ के यहां उन्होंने संगीत सीखा। इसके बाद उन्होंने गाजियाबाद में रैमग्टन कंपनी में सेल्समैन का काम किया। तब उन्हें बीस रुपये मासिक वेतन मिलता था।
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सहगल के दिलदार नेचर और मस्तमौला मिजाज के कई किस्से फेमस हैं। कहते हैं कि केएल सहगल ने एक बड़े संगीत आयोजन में इसलिए गाने से मना कर दिया था क्योंकि उस दिन उन्हें अपने ड्राइवर की बेटी की शादी में गाने के लिए जाना था। एक बार किसी की मदद के लिए उन्होंने बाजार में घूम-घूमकर गाना गाया और चंदा इकट्ठा किया था।
सहगल का एक ही सपना था कि वे एक बहुत बड़े संगीत सम्मेलन में गायें और लोग वाह-वाह करें और सामने उनकी मां बैठी हो और तब वे कहें कि मेरे सम्मान की असली हक़दार मेरी मां हैं। उनका यह सपना साकार भी हुआ।
सहगल को जो शोहरत मिली वो कम ही लोगों को हासिल होती है। उनकी लोकप्रियता का आलम ये रहा है कि अपने दौर के सबसे मशहूर रेडियो चैनल रेडियो सीलोन ने करीब 48 साल तक हर सुबह अपना एक कार्यक्रम सहगल के गानों पर ही आणारित रखा था।
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अत्याधिक शराब पीने के कारण 1946 में वह बेहद बीमार हो गए और अपने प्रशंसकों से सेहतमंद होकर लौटने का वादा कर के अपने प्रिय नगर जालंधर चले आए। जहां 18 जनवरी 1947 को लीवर की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
शराब की लत उनको इस हद तक थी कि सहगल ने अपने लगभग सभी गाने शराब के नशे में गाए, केवल एक ही गाना 'जब दिल ही टूट गया उन्होंने बिना शराब पिए गाया था। कहा तो ये भी जाता है कि इसी गाने को सुनते हुए उनके प्राण निकले थे।
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