सरकारी नौकरी छोड़ कर यूपी के मुख्यमंत्री बन गए श्रीपति मिश्रा
Story by : molly.seth@inext.co.in
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राजनीतिक उठापटक :
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बदलाव की बयार महज प्रदेश की नहीं देश की भी दशा दिशा को प्रभावित करती है ये बात बार बार दोहरायी जाती रही है। इसी बदलाव की लहर पर बैठ कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने गरम मिजाज वी पी सिंह के बाद बेहद नरम स्वभाव के कांग्रेस नेता श्रीपति मिश्रा। श्रीपति जिस पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकल कर आये थे वो उनके व्यक्त्िव का हिस्सा बन चुकी थी और जमीन से जुड़ा ये शख्स लालफीता शाही की हकीकत को जानने के साथ उससे जूझने के तरीके भी जानता था। गांव की राजनीति करते हुए श्रीपति मिश्रा प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचे और 19 जुलाई 1982 से 3 अगस्त 1984 तक इस पद पर रहे।
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महत्वपूर्ण फैसले :
कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी श्रीपति मिश्रा के चयन या उनकी कार्य प्रणाली से खास संतुष्ट नहीं थीं, किंतु जनता के बीच उनकी साफ सुथरी छवि कहिए या उत्तर प्रदेश में विकट हो चुकी डाकुओं की समस्या से निपटने में नाकाम रहे वी पी सिंह की विफलता से उपजा शून्य उन्होंने अपनी ये नापसंदगी साफ तौर पर कभी जाहिर नहीं की। बहरहाल श्रीपति जी के मात्र दो साल के छोटे से कार्यकाल में उन्होंने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया जो मील का पत्थर कहा जा सके। पार्टी के अंदर फैले असंतोष को भी वे काबू करने में कामयाब नहीं हुए।
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काम :
1949 में उन्होंने जिले के सिविल कोर्ट में वकालत शुरू की। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली। 1954 से चार वर्ष तक वे जूडीशियल मजिस्ट्रेट के रूप में काम किए। फिर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर वकालत व राजनीति शुरू की। 1962 व 1967 में विधायक चुने जाने के साथ विधानसभा उपाध्यक्ष भी बने। भारतीय क्रांति दल की ओर से 1969 में सांसद बने और चौधरी चरण सिंह के अनुरोध पर लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर प्रदेश के शिक्षामंत्री का पद संभाला। 1970 से 76 तक एमएलसी रहे मिश्र योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी बने। 1982 में मुख्यमंत्री बने तो दो साल तक दायित्वों का निर्वहन किया। वे 1985 में जौनपुर के मछली शहर से सांसद भी चुने गए थे। इस दौरान उन्होंने कई देशों की यात्रा भी की।
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व्यक्ितगत जीवन :
बीस जनवरी 1924 को शेषपुर गांव में रामप्रसाद मिश्र के घर जन्मे श्रीपति एक धार्मिक प्रवृत्ति के कोमल स्वभाव के इंसान थे। अपनी मां जसराज के नक्शे कदम पर चलकर वे समाज सेवा की ओर आकर्षित हुए। गांव में प्रारंभिक शिक्षा तो सुल्तानपुर में हाईस्कूल व काशी से इंटर मीडिएट करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ गए थे। चौदह वर्ष की उम्र में ही वे राजनीति से जुड़ गए। 1938 में वे एक भूखहड़ताल में शामिल हुए। 1941 में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के यूनियन सचिव चुने गए थे। 1941 में उनका राजकुमारी मिश्र से विवाह हुआ। श्रीपति की चार संताने हैं तीन पुत्र, एक पुत्री। सात दिसंबर 2002 को वे पंचतत्व में विलीन हो गए।