वीर बहादुर सिंह: खालिस देसी मुख्यमंत्री जिसने परदेस में ली अंतिम सांस
Story by : molly.seth@inext.co.in
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राजनीतिक उठापटक :
नरायण दत्त तिवारी के बाद जब प्रदेश के चौहदवें मुख्यमंत्री के तौर पर वीर बहादुर सिंह ने पद का दायित्व संभाला, यूपी बाढ़ की आपदा से त्रस्त था और तिवारी के जाने की बौखलाहट से भरा हुआ था। सबसे बड़ी बात ये थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी परिष्कृत छवि के सामने उनका देसीपन इतनी हद तक गंवई लगता था कि लोगों को उनके चयन पर हैरानी हुई थी। बहुत लोग उन्हें चतुर राजनीतिज्ञ मानते थे और कुछ कुटिल और दंदफंदी, पर खुद वीर बहादुर ने अपने व्यक्तित्व को लेकर होने वाली बातों का उत्तर दिया ना कोई बदलाव किया। हां ये जरूर था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वो किसी हद तक पहनावे को लेकर सर्तक और एक सीमा तक स्टाइलिश होने लगे थे। उनके कार्यकाल में कई बार ऐसी उथल पुथल हुई जो अच्छे अच्छे कुशल राजनेताओं को विचलित कर देती है पर वो निरपेक्ष भाव से अपना काम करते रहते थे और शायद यही उदासीनता उनके विरोधियों को परास्त कर देती थी। जैसा उन्होंने वीपी सिंह के बोफोर्स कांड के हल्ले के बीच किया या फिर 22 कांग्रेसी हरिजन विधायकों के गुपचुप जनमोर्चा ज्वाइन करने का हंगामा हो। वीर बहादुर सिंह हमेशा प्रदेश की जातिगत राजनीति के बीच जगह बनाने की कोशिश करते थे और इस लड़ाई को ब्राह्मण बनाम राजपूत की लड़ाई माना जाता रहा। उनके और एनडी तिवारी के बीच भीतर भीतर दांवपेंच चलते रहे।
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महत्वपूर्ण बातें :
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महत्वपूर्ण काम :
वीर बहादुर सिंह चाहते थे कि प्रदेश के युवकों को यहीं ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकें। इसी क्रम में उन्होंने रामगढ़ ताल परियोजना, बौद्ध परिपथ, सर्किट हाउस, सड़कों का चौड़ीकरण, विकास नगर, राप्तीनगर में आवासीय भवनों का निर्माण, पर्यटन विकास केंद्र की स्थापना, तारामंडल का निर्माण और विभिन्न पार्को का सुंदरीकरण कराने का काम किया। वे प्रदेश के एतिहासिक इलाकों को विश्व के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में तब्दील करना चाहते थे। वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश को देश का औद्योगिक केंद्र भी बनाने की ख्वाहिश रखते थे।
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व्यक्ितगत जीवन :
18 जनवरी,1935 को गोरखपुर के हरनही गांव में जन्में वीर बहादुर सिंह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े रहे थे। उन्होंने डात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेना शुरू कर दिया था। युवा नेता ओम प्रकाश पाण्डेय के साथ राजनीति में उतरे बीर बहादुर, पाण्डेय की अचानक हुई मौत के बाद पुर्वांचल की राजनीति में उभर कर सामने आये। देश की मिट्टी के साथ जुड़ी राजनीति करने वाले वीर बहादुर सिंह की 1990 में पेरिस में मृत्यु हो गई। उनके सर्मथक उन्हें पूर्वाचल का विकास पुरुष मानते थे। वीर बहादुर सिंह की मृत्यु के इतने समय बाद भी लोगों को भरोसा नहीं होता कि प्रदेश की मिट्टी से जुड़े इस शख्स ने परदेस में अंतिम सांस ली।