यह मां सदियों से कर रही अपने भक्त गोरखनाथ का इंतजार, इस शक्तिपीठ में अकबर ने भी मानी थी अपनी हार
ज्वाला देवी की उत्पत्ति
ज्वाला जी का मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। इन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है, जो शिव और शक्ति से जुड़े हुई हैं। मान्यता है कि शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नही समझते थे। फिर भी सती बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कूद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। तब पूरे ब्रह्माण्ड को संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़े कर दिए। देवी के शरीर के अंग जहां जहां गिरे वहां शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि ज्वालाजी मे माता सती की जीभ गिरी थी और इस स्थान को शक्ति पीठ की मान्यता मिली।
माता के 51 शक्तिपीठ, जानें दर्शन करने कहां-कहां जाना होगा
ज्वाला देवी की कहानी
ज्वाला जी मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। इस मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है। कहते है कि गोरखनाथ नाम का मां का एक अनन्य भक्त था। एक बार उन्हें भूख लगी तब उन्होंने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, तब तक मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। मां आग जलाकर पानी गर्म करके अपने भक्त गोरखनाथ का इंतज़ार करने लगी पर वे आज तक लौट कर नहीं आए। गोरखनाथ की प्रतीक्षा में मां आज भी ज्वाला जला कर बैठी हैं। कहते हैं जब कलियुग ख़त्म होगा और सतयुग आएगा तब गोरखनाथ लौटकर मां के पास आएंगे। तब तक यह जोत इसी तरह जलती रहेगी। इस जोत को घी और तेल की जरुरत नहीं होती है। ज्वाला जी मंदिर के पास ही गोरखनाथ नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर एक जल कुंड है जिसका पानी देखने पर उबलता हुआ लगता है पर छूने पर एकदम ठंडा होता है।
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मां की नौ जोत
सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पुनरुद्धार करवाया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
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जब अकबर भी हुआ मां का कायल
कहते हैं एक बार जब अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त नाम का परम भक्त देवी के दर्शन के लिए अपने गांववासियों के साथ ज्वालाजी के लिए जा रहा था। जब वो लोग दिल्ली से गुजर रहे थे तो बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उन्हें रोक लिया और दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उसने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है और वह क्या-क्या कर सकती है? ध्यानु ने उत्तर दिया कि वह पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती, तब अकबर ने उसके घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। तब ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। ये चमत्कार देख अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। उसने देवी के मंदिर में सोने का छत्र चढ़वाने का र्निणय किया किन्तु उसके मन मे अभिमान आ गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है। तब माता ने उसके छत्र को अस्वीकार करके गिरा दिया। साथ उसे एक अजीब धातु में बदल दिया। ये छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है और किस धातु का है ये आज तक एक रहस्य है।