उलझें नहीं इस दिन करें चैत्र नवरात्र के कलश की स्थापना और पूजा
महत्वपूर्ण पंचागों ने बताई है तिथि
कई चर्चित और महत्वपूर्ण पंचांगों के अनुसार 28 मार्च को सुबह 8:27 बजे से चैत्र अमावस्या समाप्त हो रही है। वहीं चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा तिथि इसी दिन 8:28 बजे से शुरू हो रही है, जो अगले दिन यानी 29 मार्च को सुबह 6:25 बजे समाप्त हो जाएगी। अत प्रतिपदा 28 मार्च को ही है। कई विद्धानों का कहना है कि अगर प्रतिपदा तिथि का क्षय हो तो भी नवरात्र का आरंभ अमावस्या वाले दिन प्रतिपदा में होगा। इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का क्षय है, इसलिए ये नवरात्र अमावस्या वाले दिन 28 मार्च को ही आरंभ होंगे, इसमें भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। इन विद्धानों का ये भी कहना है कि तिथियों की ऐसी चाल करीब 20-22 साल बाद बनी है।
तिथियों में पैदा हुआ भ्रम
अमावस्या अठ्ठाइस को सुबह साढ़े आठ बजे तक है। इसके बाद नियमानुसार कलश स्थापना करें। कलश स्थापना 28 मार्च को ही है। 28 मार्च को सुबह प्रतिप्रदा नहीं रहेगी। 8:30 बजे के बाद नवरात्र की कलश स्थापना करें और विधि के साथ पूजा करें। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 28 मार्च से शुरू होकर 29 मार्च को सूर्यादय के पहले तक रहने से लोगों के बीच नवरात्र को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। कुछ लोगों का कहना है कि नवरात्र 28 मार्च से शुरू होंगे, जबकि कुछ लोग कह रहे हैं कि नवरात्र 29 मार्च से शुरू होंगे। इस संबंध में धर्म शास्त्रियों का कहना है कि नवरात्र 28 मार्च से ही शुरू होंगे क्योंकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 29 मार्च को सूर्योदय से पहले तक ही है।
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शास्त्र सम्मत है 28 की पूजा
कई पंचांगों और पंडितो का कहना है कि शास्त्रों के अनुसार अगर कोई तिथि सूर्योदय से पहले ही खत्म हो जाती है तो वो मान्य ही नहीं होती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा क्योंकि 28 मार्च से 29 मार्च को सूर्योदय से पहले तक है। इस स्थिति में 29 मार्च को नवरात्र का दूसरा दिन माना जाएगा। इसलिए पूजा इस क्रम में होगी
28 मार्च को कलश स्थापना सुबह 8 बजकर 27 मिनट से लेकर 10 बजकर 24 मिनट तक, फिर अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:01 बजे से 12:50 बजे तक, ये वह समय होता है जिसमें कोई भी शुभ काम किया जा सकता है।
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चार अप्रैल को रामनवमी
इस तरह से वासंतिक नवरात्र 28 मार्च से शुरू होकर चार अप्रैल तक चलेगा। मास की नवमी तिथि पर चार अप्रैल को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। अष्टमी व नवमी को लेकर भी इसी तरह भ्रम की स्थिति में ना रहें, शास्त्रानुसार भगवान श्रीराम का जन्म मध्य व्यापनी चैत्र शुक्ल नवमी में पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था, और चार अप्रैल 2017 को मध्याह्न के समय नवमी पुनर्वसु नक्षत्र में है। अतः इस वर्ष श्रीदुर्गाष्टमी व श्रीरामनवमी एक ही दिन 4 अप्रैल को मनाई जाएगी।
प्रतिपदा का क्षय होने से 8 दिनों की होगी नवरात्रि