30 जून 1999 का वह दिन जब जांबाज नायक विजय सिंह भंडारी ने अपने वतन के खातिर महज 24 वर्ष की उम्र में प्राणों की बाजी लगा दी। वे अपने पीछे अपनी मां पिता और बहन को हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए। 21 वर्ष बीत गए लेकिन बुजुर्ग मां को अपने बेटे की कुर्बानी पर नाज है। कहती हैं कि बेटे ने देश की खातिर कर्तव्य निभाया। जब भी कारगिल विजय दिवस मनाया जाएगा बेटे को पूरा देश याद करता रहेगा।


देहरादून (मीना नेगी)। बात हो रही कारगिल शहीद हुए नायक विजय सिंह भंडारी की बुजुर्ग मां राम चंदेरी देवी की। वे मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल व दून के अंबीवाला श्यामपुर निवासी हैं। उनका इकलौता बेटा 30 जून को कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गया था। उन्हें बेटे की शहादत पर नाज है। नायक विजय सिंह भंडारी ने सेना ज्वाइन करने के चार साल बाद ही देश के अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। मां कहती है कि देश की सेना दुनिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से एक है। जिसने दुश्मन के हर नापाक मंसूबों को नेस्तनाबूद किया है।चीन के साथ तनाव की खबरों से खो जाती हैं पुरानी यादों में


26 जुलाई को कारगिल दिवस है। हर साल इस दिन शहीदों की कुर्बानी याद करने के लिए प्रशासन और सेना की ओर से श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है। सभा में इस साल केवल 40 लोगों को ही बुलाया है। लेकिन कई लोग ऐसे हैं जो देश के लिए अपने बेटे को समर्पित करने के बाद उनकी शहादत पर फख्र महसूस कर रहे है। आजकल चीन के साथ तनाव की खबरें देखकर राम चंदेरी देवी अपने कारगिल शहीद बेटे की उन पुरानी यादों में चली जाती हैं।

शादी के 10 दिन बाद ही वापस लौट गया था ड्यूटी परकारगिल में शहीद हुए नायक विजय सिंह भंडारी की मां राम चंदेरी देवी अंबीवाला स्थित श्यामपुर के पोस्ट ऑफिस में रह रही हैं। पति की भी मौत हो चुकी है बेटा देश के लिए पहले ही कुर्बान हो चुका है। बेटे की शादी के केवल 10 दिन ही हुए थे कि वह ड्यूटी में वापस लौट गया। ड्यूटी पर लौटने के बाद ही 1999 कारगिल युद्ध छिड़ गया था। दो महीने बाद बेेटे की शहादत की खबर आई। तब से बेेटे की मौत से आहत हैं। अब भी कभी जंग की खबर आती है तो उन दिनों की यादें ताजा हो जाती है।dehradun@inext.co.in

Posted By: Dehradun Desk