भगवान् शिव के दो स्वरूप हैं। पहला भक्तों को अभय देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और दूसरा दुष्टों को दण्ड देने वाला काल भैरव स्वरूप। इस बार काल भैरव जयंती 19 नवम्बर को पड़ रही है...


जहां विश्वेश्वर स्वरूप अत्यन्त सौम्य और शान्त है, वहीं उनका भैरव स्वरूप अत्यन्त रौद्र, भयानक, विकराल तथा प्रचण्ड है। शिवपुराण की शतरुद्र संहिता  (५/२) के अनुसार परमेश्वर सदाशिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव रूप में अवतार लिया। अतः उन्हे साक्षात् भगवान् शंकर ही मानना चाहिये-भैरव: पूर्णरूपो हि शंकरस्य परात्मन:।मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिवमायया।
मंगलवार दिनांक 19 नवम्बर को अष्टमी दिन में 1 बजकर 50 मिनट से लग रही है जो बुधवार 20 नवम्बर को दिन में 11 बजकर 41 मिनट तक है। भैरव जी का जन्म मध्याह्न मे हुआ था, इसलिये मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी लेनी चाहिये। मंगलवार 19 नवम्बर को अष्टमी मध्याह्न में प्राप्त हो रही है अत: मंगलवार को ही भैरवाष्टमी मनायी जायेगी।इस दिन प्रातः काल उठकर नित्यकर्म एवं स्नान से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिये तथा भैरव जी के मंदिर में जाकर वाहन सहित उनकी पूजा करनी चाहिये। 'ऊँ भैरवाय नम:' इस नाम मंत्र से षोडशोपचार पूजन करना चाहिये। भैरव जी का वाहन कुत्ता है, अतः इस दिन कुत्तों को मिष्ठान खिलाना चाहिये। इस दिन उपवास करके भगवान काल भैरव के समीप जागरण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। मार्गशीर्षसिताष्टम्यो कालभैरवसंन्निधौ।उपोष्य जागरन् कुर्वन् सर्वपापै: प्रमुच्यते।।


भैरव जी काशी के नगर रक्षक(कोतवाल) हैं। काल भैरव की पूजा का काशी नगरी मे विशेष महत्व है। काशी में भैरव जी के अनेक मंदिर हैं । जैसे - काल भैरव, बटुक भैरव,आनन्द भैरव आदि।-ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र

Posted By: Vandana Sharma