काल भैरव अष्टमी 2018: दुष्टों को दंड देने के लिए शिव ने लिया भैरव अवतार, जानें व्रत और पूजा विधि
भगवान शिव के दो स्वरूप हैं- पहला — भक्तों को अभय देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और दूसरा- दुष्टों को दण्ड देने वाला काल भैरव स्वरूप। जहां विश्वेश्वर स्वरूप अत्यन्त सौम्य और शान्त है, वहीं उनका भैरव स्वरूप अत्यन्त रौद्र, भयानक, विकराल तथा प्रचण्ड है।
शिवपुराण की शतरुद्र संहिता (५/२) के अनुसार, परमेश्वर सदाशिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव रूप में अवतार लिया। अतः उन्हे साक्षात् भगवान शिव ही मानना चाहिए-भैरव: पूर्णरूपो हि शंकरस्य परात्मन:।मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिवमायया।।व्रत और पूजा विधिकाल भैरव का जन्म मध्याह्न में हुआ था, इसलिए मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी लेनी चाहिए। जो इस वर्ष शुक्रवार 30 नवम्बर को पड़ रही है।
इस दिन प्रातः काल उठकर नित्यकर्म एवं स्नान से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भैरव जी के मंदिर में जाकर वाहन सहित उनकी पूजा करनी चाहिए।
'ऊँ भैरवाय नम:' मंत्र से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। भैरव का वाहन कुत्ता है, अतः इस दिन कुत्तों को मिष्ठान्न खिलाना चाहिए।पापों से मिलती है मुक्तिइस दिन उपवास करके भगवान काल भैरव के समीप जागरण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
काशी में पूजा का विशेष महत्व
मार्गशीर्षसिताष्टम्यो कालभैरवसंन्निधौ।उपोष्य जागरन् कुर्वन् सर्वपापै: प्रमुच्यते।।भैरव जी काशी के नगर रक्षक (कोतवाल) हैं। काल भैरव की पूजा का काशी नगरी में विशेष महत्व है। काशी में भैरव जी के अनेक मंदिर हैं। जैसे - काल भैरव, बटुक भैरव,आनन्द भैरव आदि।— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालयपूजा करते समय आप भी तो नहीं करते हैं ये 10 गलतियां, ध्यान रखें ये बातेंइस गांव में हुआ था शिव-पार्वती का विवाह, जहां आज भी जल रही ज्योति