पिछले साल जॉन अब्राहम की 'परमाणु' और 'सत्यमेव जयते' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का परचम लहराया था। अब वे जासूसी थ्रिलर 'रोमियो अकबर वाल्टर' रॉ में नजर आएंगे। रॉबी ग्रेवाल निर्देशित यह फिल्म एक आम आदमी के जासूस बनने के बाद बदली जिंदगी पर आधारित है। फिल्म में जॉन अब्राहम ने कई लुक बदले हैं। स्मिता से उनकी बातचीत के अंश...


feature@inext.co.inKANPUR: क्या वजह है कि अब आप लगातार गंभीर मुद्दों पर आधारित फिल्मों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं? ऐसा नहीं है। मैं अनीस बज्मी की कॉमेडी फिल्म 'पागलपंती' भी कर रहा हूं। बहरहाल, 'रॉ' की स्कि्रप्ट बेहतरीन है। पहली बार में नैरेशन सुनने के दौरान ही यह मुझे बहुत अच्छी लगी थी। मुझे लगा कि यह मौका खोना नहीं चाहिए। इस उम्दा कहानी को जरूर बताना चाहिए। रॉ को 1971 के युद्ध के पहले स्थापित किया गया था। आप किन नई जानकारियों से रूबरू हुए?


मुझे फिल्म से बहुत कुछ सीखने को मिला। दर्शकों को भी मिलेगा। 'परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण' से लोग बारीकी से परिचित नहीं थे। पर्दे पर देखने के बाद वे अचंभित थे। वह फिल्म उनके दिलोदिमाग पर छा गई थी। 'रॉ' के साथ भी वैसा ही होगा। आपको कई सार्थक जानकारियां मिलेंगी। उस समय रॉ को दुनिया की तीन सर्वश्रेष्ठ खुफिया एजेंसी में शुमार किया जाता था और यह काफी प्रभावी एजेंसी हुआ करती थी। हम कहते हैं कि कोई भी इंसान सिर्फ जानकारी के आधार पर नुकसान उठाता है। सूचना उस समय बहुत जरूरी होती थी, आज भी है और हमेशा रहेगी। फिल्म में सूचना के आदान-प्रदान को लेकर काफी फोकस किया गया है। फिल्म का मेरा सबसे बड़ा रेफरेंस प्वाइंट निर्देशक रॉबी ग्रेवाल के पिता जी थे। वे आर्मी के खुफिया विभाग में थे। उनके पास जो जानकारी थी, उससे बड़ा कोई इनसाइक्लोपीडिया नहीं हो सकता था। हमें उनके माध्यम से काफी जानकारी मिली। अहम बात यह है कि फिल्म में इस्तेमाल सभी तथ्य सही हैं। हमने कोई क्रिएटिव लिबर्टी नहीं ली है। हमने देश पर संवेदनशील फिल्म बनाई है। क्या लगता है कि अब फिल्मों में नाच-गाना अनिवार्य नहीं होने से उम्दा फिल्में बनाने की राहें आसान हो गई हैं?मुझे लगता है कि फिल्मों में नाच-गाना भी जरूरी है। यह फिल्म पर निर्भर करता है। रियलिस्टिक फिल्म और कॉमर्शियल फिल्मों में बहुत बारीक रेखा होती है। आपको कहानी बताने के साथ ऑडियंस को भी एंटरटेन करना होता है। लिहाजा इतना भी रियल नहीं होना चाहिए कि फिल्म डॉक्यूमेंट्री जैसी दिखे।फिल्म में 1971 के युद्ध को कितना दिखाया गया है?

यह एक जासूस की मानवीय कहानी है। इसमें युद्ध की कई क्लिप दिखाई गई हैं। मैं अभी कहानी के बारे में बता नहीं सकता। बहरहाल, यह किरदार जीना मेरे लिए काफी कठिन रहा। किरदार में बहुत सारे इमोशन हैं। उसका अपनी मां और मातृभूमि के साथ गहरा लगाव है। दोनों में किसी को भी दुख या नुकसान पहुंचते नहीं देख सकता है। फिल्म में मैंने कई लुक बदले हैं। जब इसकी शूटिंग की थी तब काफी गर्मी थी लेकिन उन हालातों में काम करना था। हालांकि उन्हें पर्दे पर साकार करना मुझे अच्छा लगा। उसे देखकर सुख की अनुभूति होती है।फिल्म में कालजयी गाना 'ए वतन' है। आपकी उस गाने से जुड़ी क्या यादें हैं?वह मेरा पसंदीदा गाना है। यही वजह है कि उसके अधिकार खरीदे गए। गाने को ट्रेलर में भी शुमार किया गया। मोहम्मद रफी साहब ने यह गाना गया था। यह मेरे दिल के बेहद करीब है। जब भी यह गाना सुनता हूं तो आंखों में आंसू भर आते हैं। गाने में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी है।आप राजनीति पर आधारित जानकारियों को लेकर भी काफी जागरूक रहते हैं। यह किरदारों को निभाने में किस प्रकार मददगार होता है?

जानकारियों का होना बहुत जरूरी है। अगर मुझे बाइक चलानी नहीं आती है और मैं मोटरसाइकिल आधारित फिल्म करूं तो मैं नहीं विश्वसनीय लगूंगा। ठीक उसी प्रकार राजनीति पर आधारित फिल्म करने के लिए जानकारी होनी चाहिए। किरदार को निभाते समय वह जानकारी आपके दिमाग में रहती है। कहानी अगर कश्मीर में सेट है तो आपको पता होता है कि वहां किस तरह का माहौल है।देशभक्ति आधारित फिल्मों के लिए मनोज कुमार जाने जाते हैं। आप वर्तमान के मनोज कुमार कहलाना पसंद करेंगे?मनोज कुमार लेजेंड हैं। मैं उनके मुकाम तक पहुंच नहीं सकता। मैं उनके साथ अपनी तुलना भी नहीं कर सकता हूं। मगर हां मैं अपने देश से बहुत प्यार करता हूं। मैं अपने देश की सेवा के लिए हमेशा तैयार हूं। दर्शकों से मुझे बहुत प्यार मिलता है। शायद इस वजह से उस मिजाज की फिल्में भी मुझे ज्यादा आकर्षित कर रही हैं। मुझे देशभक्ति आधारित फिल्में करना अच्छा लगता है। देशभक्ति आधारित फिल्मों से संदेश स्वत: आता है कि हम किसी देश के खिलाफ युद्ध नहीं कर रहे हैं बल्कि हम आतंक के खिलाफ लड़ रहे हैं।आपके हिसाब से देशभक्ति की परिभाषा क्या है?
छोटी-छोटी बातों से भी आप अपनी देशभक्ति जाहिर कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर पहले आप यह सोचे कि अपने घर के बाहर क्या करते हैं? उन सड़कों को गंदा न करें जिन पर चलते हैं। अपने देश से प्यार करें। अगर आप देश से प्यार करते हैं तो गंदगी क्यों फैलाते हैं। ऐसी कई छोटी-छोटी चीजें हैं, जिस पर अमल करना जरूरी है। उसके बाद आप सेना के बारे में सोचे।पुलवामा जैसी हालिया घटना में कलाकारों की भूमिका कितनी अहम होती है?यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उस हमले में हमारे कई जवान शहीद हो गए। मुझे उस घटना को लेकर बहुत दुख होता है। अभी देश का माहौल ही वैसा है। हालांकि हमारा मकसद उससे किसी प्रकार का फायदा उठाना नहीं है। हमारी फिल्म तो काफी समय से बन रही थी। हमें कहानी कहनी थी और हम वही कर रहे।'बाटला हाउस' को लेकर आपने ट्वीट किया था कि हमने बाटला के लिए खून बहा दिया। क्या बताना चाहते थे?दरअसल, मेरी अंगुली पर असली बुलेट लगा था। खुशकिस्मत था कि वह सिर्फ मेरी अंगुली को छूते हुए निकल गई। थोड़ा सा खून निकल रहा था तो मैंने कहा कि मैंने देश के लिए खून बहाया। बहरहाल, 'सत्यमेव जयते' के बाद निखिल आडवाणी के साथ दूसरी फिल्म कर रहा हूं। हम लोगों की फिल्मों को खूब पसंद किया जाता है। यही वजह है कि 'बाटला हाउस' को साथ में निर्मित किया है। फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है। इसके अलावा निखिल के साथ ही '1911' भी बना रहे हैं। यह भारतीय खेल इतिहास की ऐतिहासिक घटना पर आधारित है।स्टार किड होने का नहीं हुआ कोई फायदा, कहा 'न्यूकमर की तरह ऑडिशन देकर आई हूं' : प्रनूतनपाकिस्तानी सिंगर आतिफ की जगह ले सकते हैं सलमान, गाएंगे 'नोटबुक' का ये रोमांटिक साॅन्ग

Posted By: Vandana Sharma