जीतेंद्र को स्क्रीन टेस्ट में किसने की मदद
जीतेंद्र कहते हैं, "मैं अपने दोस्त राजेश खन्ना के पास गया. तब वो थिएटर किया करते थे. उन्होंने मुझे तैयारी करवाई और मैं 'गीत गाया पत्थरों ने' के लिए चुना गया."
ऐसे ही एक दिन शांताराम जी के सेट पर मैंने एक आदमी से कहा कि मैं शूटिंग देखना चाहता हूं. उस आदमी ने कहा कि शूटिंग देखने के लिए काम करना होगा. इसके बाद उसने मुझे जूनियर आर्टिस्ट का रोल दिलवा दिया.
वो आगे कहते हैं, ''मैंने जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर बहुत मेहनत की और एक दिन हिम्मत कर शांताराम जी से मिल कर उनसे फ़िल्म में काम करने का एक मौक़ा मांग लिया.''
'जम्पिंग जैक' के नाम से पहचाने जाने वाले अभिनेता ने बीबीसी से ज़िंदगी के कुछ दूसरे पहलुओं को भी बांटा.
वो कहते हैं कि जब निर्माता उनके पास आता था, तो उनसे फ़िल्म में अपने किरदार के बारे में पूछने के बजाय, वो उससे सीधे हस्ताक्षर करने की जगह पूछते थे.
उन्हें अपनी फ़िल्मों के सफ़ल होने की ख़ुशी है लेकिन दुख है कि इस वजह से वो बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाए.
जितेन्द्र की बेटी एकता कपूर को 'क़्वीन ऑफ़ टेलीविज़न' कहा जाता है. हालांकि वो कहते हैं कि उन्होंने ख़ुद इसकी कल्पना नहीं की थी कि एकता कपूर कभी इतनी कामयाब होंगी.
वो बताते हैं, ''मैं जिस एकता को जनता था, वो खाने की शौकीन हुआ करती थी. दिन रात उसे खाना चाहिए, यहां तक कि वो अपने भाई का भी खाना खा लिया करता थी.''
हंसते हुए कहते हैं कि अब तो उससे बात करने से पहले 10 बार सोचना पड़ता है, क्योंकि उसका दिमाग़ बहुत तेज़ चलता है. लेकिन मुझे कोई सुझाव चाहिए होता है, तो उससे ज़रूर बात करता हूं. वो सही फ़ैसले लेती है.
अपने फ़िल्मी करियर से उन्हें कोई शिक़ायत नहीं है. वो कहते हैं,"मैं एक तोता राम हूं. मुझे जिसने जैसा कहा मैंने वैसे काम किया."
वो खुद को एक संतुष्ट अभिनेता बताते हैं और कहते हैं कि मैं सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान देता था, दूसरों के काम से मैंने कभी मतलब नहीं रखा.