Ranchi: सिटी में पहली बार ट्रेन 1907 में नैरो गेज पर चली थी जो रांची से पुरूलिया तक गई थी. इसके बाद रांची से लोहरदगा के बीच 1913 से पैसेंजर ट्रेन शुरू हुई. यह ट्रेन रांची और लोहरदगा के बीच दिन में एक बार चलती थी. सुबह यह ट्रेन रांची से लोहरदगा जाती और वहां से उसी दिन शाम को वापस आ जाती थी. बाद में इसे दोनों ओर से शुरू किया गया. एक सुबह रांची से खुलती थी और दूसरी लोहरदगा से और फिर दोनों उसी दिन शाम को वापस हो जाती थी. यह ट्रेन रांची और लोहरदगा के बीच लाइफलाइन मानी जाती थी.

टूरिस्ट्स को पसंद थी ट्रेन
रांची और लोहरदगा के बीच नैरो गेज की इस ट्रेन में कोयले का इंजन लगा हुआ था। यह ट्रेन जब चलती थी तो इसे देखने के लिए लोग इसके नजदीक आ जाते थे। उस वक्त इस ट्रेन में सफर करना बहुत ही रोमांचकारी हुआ करता था। खासकर छोटानागपुर के दौरे पर आनेवाले इंग्लिश ऑफिसर्स तो इस ट्रेन को लेकर काफी क्रेजी हुआ करते थे। उनके लिए इस ट्रेन की बोगी में स्पेशल अरेजमेंट किया जाता था। इसके अलावा टूरिस्ट्स भी इस टे्रन से जर्नी करना पसंद करते थे।

बिजनेस से था कनेक्शन  
साहित्यकार श्रवण कुमार गोस्वामी का कहना है कि रांची लोहरदगा ट्रेन से लोहरदगा से बड़ी संख्या में लोग रांची आते थे। यह ट्रेन सुबह 10 बजे रांची रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी। दिनभर वे लोग रांची रहकर अपना बिजनेस करते थे और शाम को लोहरदगा लौट जाते थे। रांची में ट्रेन की शुरुआत कैसे हुई, इस पर श्रवण कुमार गोस्वामी ने छोटी लाइन से बड़ी कहानी नाम से एक चैप्टर लिखा है, जो उनकी बुक रांची तब और अब में पब्लिश हुई है।
हेरिटेज बनते-बनते रह गई  
रांची-लोहरदगा छोटी लाइन को हेरिटेज में शामिल करने की बात चल ही रही थी कि 2004 में यहां पर नैरो गेज को मीटर गेज में कनवर्ट कर दिया गया और नैरो गेज ट्रेन का चलना बंद हो गया।

ट्रेन पर डॉक्यूमेंट्री
इस ट्रेन का झारखंड, रांची और लोहरदगा के लिए क्या इम्पॉर्टेंस था। कैसे यह ट्रेन यहां की लाइफस्टाइल में शामिल थी, इसे दिखाने के लिए  डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर मेघनाथ और बीजू टोप्पो ने 'गाड़ी लोहरदगा मेलÓ नाम से डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई। इसे रांची-लोहरदगा नैरो गेज ट्रेन के अंदर ही फिल्माया गया था। इसमें जानेमाने संस्कृतिकर्मी दिवंगत राम दयाल मुंडा ने म्यूजिक दिया था। यह फिल्म देश दुनिया के फिल्म फेस्टिवल्स में अवार्ड भी जीत चुकी है।


स्टीम की स्टोरी सुनाता यह इंजन

रांची रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ा यह स्टीम इंजन स्टेट में ट्रेन के डेवलपमेंट की स्टोरी का गवाह है। स्टेट डिफ्रेंट रूट पर चलने के बाद रांची-लोहरदगा नैरो गेज पर ट्रेन की बोगियों को खींचने वाला यह इंजन 200४ में रांची रेलवे स्टेशन पर लगाया गया है। यह इंजन चित्तरंजन रेल फैक्ट्री में बना है। आज भी इस इंजन को देखने के लिए लोग बाहर से आते हैं। हालांकि बहुत कम लोगों को इस बारे में जानकारी मिलती है कि यह इंजन कभी रांची-लोहरदगा के बीच चलता था। यह इंजन भी रांची रेलवे के लिए एक हेरिटेज है। रांची रेल एडमिनिस्ट्रेशन को पब्लिक और विजिटर्स को इसकी इनफॉर्मेशन देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

Posted By: Inextlive