सिर्फ 12 लाख शहरी कंज्यूमर दे रहे हैं बिजली बिल
RANCHI: बिजली वितरण निगम हर महीने 430 करोड़ रुपए की बिजली खरीदता है, लेकिन अभी उसे 200 करोड़ रुपए ही बिल के एवज में मिल रहे हैं। चार महीने के लॉकडाउन का सबसे अधिक असर झारखंड बिजली वितरण निगम पर पड़ा है। बिजली वितरण निगम हर महीने अलग-अलग सोर्स से बिजली खरीद कर राज्य के लोगों को उपलब्ध करा रहा है। लेकिन राज्य के लोग बिजली इस्तेमाल करने के बदले में निगम को पैसा नहीं दे रहे हैं। पिछले 4 महीने में पूरे राज्य में 12 लाख कंज्यूमर ही सिर्फ बिजली का बिल जमा कर रहे हैं। यह सभी शहरी क्षेत्र के कंज्यूमर हैं। ग्रामीण क्षेत्र के करीब 40 लाख ऐसे कंज्यूमर हैं, जिन्होंने मार्च से जुलाई तक बिजली का बिल जमा ही नहीं किया है। चार महीने तक बिजली का बिल जमा नहीं करने के कारण निगम लगातार घाटे में जा रहा है। अगर यही स्थिति रही, तो निगम की परेशानी और बढ़ जाएगी।
कॉमर्शियल कंज्यूमर भी बैठे हैं चुपझारखंड बिजली वितरण निगम के एक अधिकारी ने बताया कि लॉकडाउन होने के बाद से लोगों ने बिजली बिल देना ही छोड़ दिया है। जुलाई महीने से कुछ कंज्यूमर बिजली का बिल दे रहे हैं। लेकिन जो बड़े और इंडस्ट्रियल कंज्यूमर हैं, वह बिजली का बिल जमा नहीं कर रहे हैं। झारखंड में रेलवे और प्राइवेट इंडस्ट्रीज बड़े कंज्यूमर हैं। उनसे राजस्व का बड़ा हिस्सा निगम को मिलता है। रेलवे से हर महीने करीब 40 करोड़ रुपए बिजली बिल मिलता है। इसी तरह झारखंड के प्राइवेट इंडस्ट्री से करीब 170 से 180 करोड़ रुपए राजस्व मिलता है। पिछले चार महीने के लॉकडाउन के दौरान लोगों ने बहुत कम बिल जमा किया है।
खर्च 430 करोड़, वसूली 200 करोड़ झारखंड बिजली वितरण निगम के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उसे हर महीने 200 से 250 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। हर महीने वह अलग-अलग सोर्स से करीब 430 करोड़ रुपए बिजली की खरीदारी करता है। आम दिनों में वितरण निगम को 430 से 500 करोड़ रुपए तक राजस्व मिलता है। लेकिन अबी निगम को करीब 200 करोड़ रुपए हर महीने राजस्व की वसूली हो पा रही है। ऐसे में 230 करोड़ रुपए हर महीने निगम को अपनी जेब से देना पड़ रहा है। लगातार आर्थिक बोझ बढ़ने के कारण निगम की परेशानी भी बढ़ रही है। वेतन पर 35 करोड़ खर्चवितरण निगम के एक अधिकारी ने बताया कि झारखंड ऊर्जा विकास निगम 35 करोड़ रुपए हर महीने अपने स्टाफ को सैलरी देने से लेकर कास्ट पर खर्च करता है। ऊर्जा विकास निगम के अंदर झारखंड बिजली वितरण निगम, झारखंड ऊर्जा संचरण निगम और झारखंड उत्पादन निगम बना है। यहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों को सैलरी देने में ही हर महीने 35 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं। ऐसे में अगर समय से राजस्व की वसूली नहीं होगी तो अधिकारियों-कर्मचारियों को आने वाले दिनों में वेतन देने में भी परेशानी होने लगेगी।