पहला टाना भगत आंदोलन था एक धार्मिक और जातीय आंदोलन

रांची (ब्यूरो) । टाना भगत के प्रवर्तक जतरा टाना बिशुनपुर, गुमला के आह्वान पर 9 स्वतंत्रता सेनानी-छोटेया टाना भगत, धोलवा टाना भगत, ढिबरा टाना भगत, ऐतवा टाना भगत, साधु टाना भगत, मकु टाना भगत, शनि टाना भगत, बिरसा टाना भगत, भोला टाना भगत ने आजादी के संघर्ष में बढ़ चढक़र हिस्सा लिया। गांधीजी के छोटानागपुर प्रवास के समय सभी टाना भक्तों ने रांची में जाकर उनसे मुलाकात की। पहला टाना भगत आंदोलन एक धार्मिक और जातीय आंदोलन था, जिसमें मांस, मदिरा को त्यागने के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे। परंतु गांधी जी के संपर्क में आने के बाद टाना भगत आंदोलन एक राजनीतिक संगठन बन गया। कई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलनों में टाना भक्तों ने भाग लिया, जिसमें नागपुर, लखनऊ, बेलगांव, कोलकाता (कलकता), गया एवं विशेषकर रामगढ़ सम्मेलन में 9 सेनानियों के साथ बडी संख्या में टाना भक्तों ने भाग लिया।
विचार विमर्श किया
यहां गांधी जी और सुभाष चंद्र बोस के साथ इन लोगों ने विचार विमर्श किया। 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ। उन दिनों सूचना तंत्र का अभाव था, विलम्ब से यह खबर टाना भक्तों के पास पहुंचा। 12 सितंबर 1942 को इन लोगों ने चंदवा थाना और कुडू थाना में राष्ट्रीय ध्वज को फहराया। इस कारण अंग्रेजी सरकार ने इन टाना भक्तों गिरफ्तार कर फुलवारी शरीफ, पटना कैंप जेल में ले जाया गया। बाद में अंग्रेजों ने अपने सुविधानुसार उन्हें विभिन्न जिलों में हस्तांतरित कर दिया गया। भोला टाना भगत एवं उनके कुछ सहयोगी को हजारीबाग सेंट्रल जेल एवं शनि टाना भगत और उनके सहयोगी को बक्सर जेल में बंद कर दिया गया। सभी टाना भक्तों को छह-छह माह की सजा हुई और भोला टाना भगत को एक साल की सजा हुई। शनि टाना भगत की बक्सर जेल में मौत हो गई।
सब कुछ न्योछावर किया
1942 के आंदोलन जेल से छूटने के बाद भोला टाना भगत एवं उसके साथियों ने देश की आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। उनकी चल-अचल सम्पति नीलम कर दी गई। जब देश आजाद हुआ तब भी टाना भक्तों का आंदोलन चलता रहा। इनके आश्रित भी जेल गए जेल गए, सजा भुगतनी पड़ी। जमीन के मालगुजारी को माफ कराने के लिए संघर्षरत रहे।
1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने टाना भक्तों का संज्ञान ले और उन्हें दिल्ली बुलाकर ताम्रपत्र देकर सम्मानित की। कुछ टाना भक्तों ने ताम्रपत्र नहीं लिए, कारण उनके चल-अचल संपत्ति नीलाम हुई थी।
आदमकद प्रतिमा लगाने
स्वर्गीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रतिमा स्थापित करने के लिए उनके आश्रितों एवं टाना समुदाय तथा डुमारो पंचायत के बुद्धिजीवियों के प्रयास से तत्कालीन विधायक प्रकाश राम ने 9 स्वतंत्रता सेनानियों की आदमकद प्रतिमा लगाने का निर्णय लिया। 30 मार्च 2020 को प्रतिमा का उद्घाटन होना था परन्तु कोरोना के कारण 30 मार्च 2022 को प्रतिमा का प्रतिमा का एवं स्वतंत्रता सेनानी प्रवेश द्वार का उद्घाटन किया गया। रांची के कारीगरों ने फाइबर की नौ मूर्तियों और एक मशाल बनाया, जिसकी लागत रू 30 लाख आई थी।


29 मार्च तीन सिमानी में पूजा अर्चना कर कलश लेकर सुबह यहां आते हैं। पूजा अर्चना के बाद राष्ट्रीय झंडा और टाना भगत का झंडा फहराया जाता है। 30 मार्च को हर साल यहां मेले का आयोजन होता है। टाना भगत अपने पारंपरिक वेशभूषा में आते हैं। विभिन्न स्कूल के बच्चे भी शामिल होते हैं। इस स्मृति दिवस के रूप में सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है।

डॉ मोहम्मद जाकिर

Posted By: Inextlive