राजधानी में कुल स्ट्रेंथ के 50 परसेंट भी नहीं हंै पुलिसकर्मी. ट्रैफिक सिस्टम संभालने के लिए जरूरत है 1470 कर्मियों की. महज 375 पुलिसकर्मियों के हवाले है पूरी व्यवस्था.


रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची की ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त होने के पीछे की वजह सिर्फ सड़क पर गाडिय़ों का बोझ बढऩा ही नहीं, बल्कि इस सिस्टम को दुरुस्त रखने वाले विभाग में मैन पॉवर की कमी भी एक बड़ी वजह है। सिटी में ट्रैफिक स्मूद रखने में ट्रैफिक पुलिस का बड़ा योगदान होता है। लेकिन, रांची में कुल स्ट्रेंथ के 50 परसेंट भी ट्रैफिक पुलिसकर्मी नहीं हैैं। ट्रैफिक डिपार्टमेंट लंबे समय से इस समस्या से जूझ रहा है। सिटी में कुल 1450 ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की जरूरत है। लेकिन, यहां महज 375 पुलिसकर्मियों से काम चलाया जा रहा है। इस वजह से सड़कों पर पुलिसकर्मी बेहद कम ही नजर आते हैैं। सिर्फ ट्रैफिक पोस्ट या वीआईपी मूवमेंट के समय ही कुछ पुलिसकर्मी एक्टिव दिखते हैं। अन्य सभी स्थानों पर जहां इनकी सख्त जरूरत है, वहां भी पुलिसकर्मियों की तैनाती नहीं होती। सिटी की ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आ रही है। पुलिस वालों की संख्या तो कम है ही, संसाधन भी बेहद सीमित हैैं। ओवर टाइम से सेहत पर असर
ट्रैफिक पुलिस की संख्या कम होने की वजह से ड्यूटी पर तैनात ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को ओवर टाइम करना पड़ रहा है। कागज पर इनकी ड्यूटी आठ घंटे है, लेकिन हर पुलिसकर्मी को दस से बारह घंटे ड्यूटी देनी पड़ती है। पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ तक नहीं मिल रहा है। लगातार ड्यूटी करने की वजह से उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सेहत पर भी असर पड़ रहा है। कई पुलिसकर्मी तनावग्रस्त जीवन जीने को विवश हैं। पुलिसकर्मियों के परिवार वालों का कहना है कि किसी पर्व, त्योहार से लेकर घर के फंक्शन में भी शामिल होने का वक्त नहीं मिलता। पुलिस लाइन में रहने वाले एक ट्रैफिक पुलिस की पत्नी ने बताया कि ड्यूटी से इतना भी वक्त नहीं मिल रहा कि अपनी बेटी के लिए शादी की बात कर सकें। हो रही हैैं कई बीमारियां ट्रैफिक पुलिस के अधिकतर जवानों को फेफड़े में संक्रमण, हाई ब्लड प्रेशर और शुगर की बीमारी है। पुलिसकर्मियों के बीमार होने का मामला स्वास्थ्य जांच में सामने आ चुका है। जवानों के स्वास्थ्य की जांच जनवरी माह में कराया गया था, जिसमें पल्मनरी फंक्शन (पीएफटी) और हेल्थ प्रोफाइल की जांच की गयी थी। इन दौरान 330 जवानों के स्वास्थ्य की जांच हुई थी। डॉक्टरों के अनुसार पुलिस के जवान दिन भर धूल-कण सांस के जरिए ग्रहण करते हैं, जिससे वे बीमारी के शिकार हो रहे हैं।सात महीनों से ट्रैफिक एसपी नहीं


रोजाना सड़कों पर गाडिय़ों की संख्या बढ़ रही है। औसतन हर साल राजधानी में एक लाख से ज्यादा गाडिय़ां बढ़ रही हैं। इससे ट्रैफिक पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद बुनियादी सुविधाएं नहीं बढ़ी हैं। स्थिति यह है कि शहर के लोग रोजाना जाम की समस्या से जूझ रहे हैं। आठ से दस किलोमीटर की दूरी तय करने में 15 से 20 मिनट सिर्फ जाम से निपटने में लग जाता है। इससे आम लोग मानसिक रूप से परेशान होते हैं। इधर ट्रैफिक सिस्टम भी भगवान भरोसे ही चल रहा है। बीते सात महीने से राजधानी में ट्रैफिक एसपी का पद खाली है। सिटी एसपी को ही ट्रैफिक का भी प्रभार दे दिया गया है।

विभाग में मैन पॉवर की कमी तो है। हालांकि, पुलिसकर्मियों को थोड़ा आराम देने के लिए ढंग का ट्रैफिक पोस्ट बनवाया जा रहा है। इसके अलावा जवानों की शिफ्ट में ड्यूटी लगाई जाएगी।- सौरव, सिटी एसपी सह प्रभारी ट्रैफिक एसपी

Posted By: Inextlive