कहीं पन्नों में दफन न हो जाए कैथी
सिर्फ सात लोग हैं जानकार
सिविल कोर्ट में दीवानी मामलों के सरकारी वकील बंशी प्रसाद की माने, तो सिटी में कुछ गिने चुने लोग ही कैथी लिपि में लिखे गए विधिक दस्तावेजों को पढ़ सकते हैैं। इसके जानकारों में सिविल कोर्ट में स्वयं बंशी प्रसाद, बख्शी अयोध्या प्रसाद, एसएन गुप्ता, बीएन रॉय, हाईकोर्ट में देवी प्रसाद, पीके प्रसाद और वी शिवनाथ हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में इस लिपि को जाननेवाला शायद ही कोई बचेगा और तब इस लिपि में लिखे गए भू अभिलेखों को प्रचलित लिपियों में तब्दील करना बेहद कठिन होगा।
20 फीसदी documents कैथी में
कैथी के जानकार और सिविल कोर्ट के सरकारी वकील बंशी प्रसाद ने बताया कि सिटी में एक साल में आठ से नौ सौ टाइटल सूट होते हैं, जिनमें से बीस फीसदी में डॉक्युमेंट कैथी लिपि में ही लिखे हुए होते हैं। वर्ष 1950 से 1954 में लिखे गए विधिक दस्तावेज कैथी लिपि में ही लिखे गए होते हैं।
कैथी के जानकारों की है जरूरत
कैथी लिपि का जन्म कायस्थ शब्द से हुआ है, जो नार्थ इंडिया का सामाजिक समूह है। इस समूह का पुराने रजवाड़ों और ब्रिटिश औपनिवेशिक समूह से काफी नजदीकी रिश्ता रहा है। कायस्थ जाति के लोग उनके यहां विभिन्न प्रकार के डाटा के मैनेजमेंट के लिए नियुक्त किए जाते थे। कायस्थों द्वारा प्रयुक्त इस लिपि को बाद में कैथी के नाम से जाना जाने लगा। इस लिपि में बिहार, झारखंड समेत यूपी के हजारों अभिलेख लिखे गए हैैं। इनसे संबंधित कोई न कोई दीवानी मुकदमा कोर्ट में आता रहता है। सिटी समेत इन राज्यों में अब कुछ गिने-चुने लोग ही हैं, जो इन्हें पढ़ सकते हैं। ऐसे में अब इसके जानकारों की अहमियत काफी बढ़ गई है।
अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के अंशुमन पांडेय ने कैथी लिपि को इनकोड करने का प्रस्ताव 13 दिसंबर 2007 को दिया था। प्रस्ताव में उन्होंने बताया है कि गवर्नमेंट गजेटियर्स में भी उल्लेख है कि वर्ष 1960 तक कैथी में बिहार के कुछ जिलों में काम किया जाता था। उस समय बिहार भी झारखंड का ही हिस्सा था।
देवनागरी आगे, कैथी पीछे
कैथी का महत्व घटने को लेकर विदेशी विद्वान रुडोल्फ हर्नल की 1880 में लिखी गई टिप्पणी उल्लेखनीय है। उन्होंने लिखा है कि देवनागरी लिपि कैथी लिपि को सुपरसीड करेगी, क्योंकि यह कम समय में और आसानी से लिखी जा सकती है। बाद में यही हुआ भी। जैसे-जैसे देवनागरी लिपि का प्रसार हुआ, कैथी इतिहास बनती चली गई। आज उसके जाननेवाले गिने-चुने हैैं।
Use नहीं होगी, तो मर जाएगी
आरयू के हिंदी के प्रोफेसर डॉ अशोक प्रियदर्शी ने बताया कि कैथी लिपि कायस्थों की भाषा थी और अधिकतर वही लोग इसे जानते-समझते और लिखते थे। जब तक इसका यूज होता रहा, यह चलती रही। आज जब इसका यूज कम हो गया है, तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। कोई भी लिपि या भाषा, जो बहुतायत में यूज नहीं होगी, वह मर जाएगी।
बिहार में होगा संरक्षण
झारखंड में कैथी को संरक्षण मिले या ना मिले। लेकिन बिहार सरकार ने कैथी को संरक्षित करने का प्रयास शुरू कर दिया है.बिहार विधानपरिषद में कांग्र्रेस की डॉ ज्योति के गैर सरकारी संकल्प के जवाब में प्रभारी मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव ने सदन को यह आश्वासन दिया कि कैथी लिपि को संरक्षित करने और इसके प्रचार-प्रसार के लिए योजना तैयार होगी।