राजधानी रांची में अब हर गली-मोहल्ले में जार वाटर की दुकानें खुल गई हैं. बिना किसी गाइडलाइन के संचालित इन दुकानों में कहीं पर 10 रुपए में 20 लीटर तो कहीं पर 30 रुपए में 20 लीटर पानी बिक रहा है. जार वाटर के प्लांटों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए रांची नगर निगम द्वारा वर्ष 2017 में ही नगर विकास विभाग को प्रस्ताव भेजा गया था. इसमें यह सुझाव दिया गया था कि ऐसे वाटर प्लांटों में वाटर मीटर लगाया जाए ताकि यह पता चल सके कि वह कितना पानी का दोहन कर रहे.


रांची(ब्यूरो) । सिटी में अब हर गली-मोहल्ले में जार वाटर की दुकानें खुल गई हैं। बिना किसी गाइडलाइन के संचालित इन दुकानों में कहीं पर 10 रुपए में 20 लीटर तो कहीं पर 30 रुपए में 20 लीटर पानी दिया जा रहा है। वहीं, बोतल बंद पानी का कारोबार भी जोरों पर है। राजधानी रांची में 25 हजार लीटर बोतल बंद पानी की डेली खपत है। ऐसे में 20 रुपए प्रति लीटर कीमत के हिसाब से एक दिन में पांच लाख रुपए का बोतल बंद पानी राजधानीवासी पी रहे हैं। यानी पूरे माह में डेढ़ करोड़ रुपए सिर्फ बोतल बंद पानी पर बड़ी आबादी खर्च कर रही है। इसमें जार पानी के उपयोग को जोड़ा जाए तो पानी पर कुल खर्च हर महीने दो करोड़ से ज्यादा हो जाएगा। ट्रेड लाइसेंस से चलाते हैं काम
रोज लाखों लीटर पानी का उपभोग करनेवाले ऐसे प्रतिष्ठान लाइसेंस के नाम पर केवल नगर निगम से ट्रेड लाइसेंस ही लेते हैं। इसके अलावा हर दिन धरती का सीना सूखानेवाले ऐसे प्रतिष्ठानों से निगम कोई शुल्क नहीं वसूलता है। इसी का नतीजा है कि ये जितना पानी जार में भरते हैं, उतने ही पानी को नाली में बहा भी देते हैं। डॉ राहुल कुमार ने बताया किबोतल बंद पानी सुरक्षित नहीं है, क्योंकि प्लास्टिक का जार अगर धूप में रहता है तो उसके माइक्रो कण पानी में मिल जाते हैं। ये कण पानी के साथ हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। शरीर में पहुंचते ही इसका दुष्प्रभाव दिखता है। यह धीरे-धीरे शरीर पर असर डालता है। ठंडे बस्ते में आरएमसी का प्रस्तावजार वाटर के प्लांटों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए रांची नगर निगम द्वारा वर्ष 2017 में ही नगर विकास विभाग को प्रस्ताव भेजा गया था। इसमें यह सुझाव दिया गया था कि ऐसे वाटर प्लांटों में वाटर मीटर लगाया जाए, ताकि यह पता चल सके कि वह कितना पानी का दोहन करते हैं। इसके अलावा यहां जल संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग हो, वाटर प्लांट घनी आबादी के बीच नहीं हो, इसका भी सुझाव दिया गया था। लेकिन प्रस्ताव पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया है।वेस्टेज भी बढ़ रहा


पेयजल की किल्लत को देखते हुए लोग अब घर से बाहर जैसे ही कहीं भी निकलते हैं तो किसी दुकान पर रुक कर दो बोतल पानी की खरीदारी जरूर करते हैं। वहीं, जब यह पानी खत्म हो जाता है तो फि र ऐसी बोतलों को खुली जगह और नाली में फेंक दिया जाता है। एक बार नाली में जाने के बाद यह किसी ठोस कचरे के संपर्क में आकर पूरी नाली में प्रवाह को ही रोक देता है। इस प्रकार से नाली का पानी ओवरफ्लो करके सड़कों पर बहने लगता है।लाखों रुपए कमा रहे

वॉशिंग सेंटर में 60 रुपए से लेकर 300 रुपए प्रति गाड़ी धुलाई की जा रही है। 60 रुपए में टू व्हीलर, 100 रुपए में थ्री व्हीलर और 300 रुपए में फोर व्हीलर की धुलाई हो रही है। इसके अलावा कुछ स्थानों पर बड़े वाहनों की भी वाशिंग हो रही है। इनमें कुछ सेंटर तो नगर निगम की सप्लाई के पानी का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। धुलाई सेंटरों में चंद पैसे के लिए गाड़ी धोने के नाम पर हर दिन हजारों लीटर पानी बर्बाद किया जा रहा है। एक सर्विस सेंटर पर एक दिन में करीब 50 बाइक और 30 से 40 कार की धुलाई होती है। एक अनुमान के मुताबिक, चार पहिया में 120 लीटर व दो पहिया वाहनों की धुलाई में लगभग 70 लीटर पानी खर्च होता है। वाशिंग सेेंटर के अलावा कार और बाइक के सर्विस सेंटर में भी हर दिन हजारों लीटर पानी बर्बाद किया जा रहा है, जिस तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उस अनुपात में वाहन धुलाई में खर्च होने वाले पानी की मात्रा भी बढ़ती जा रही है।वाटर लेवल भी पाताल में पहुंचाइन दिनों गली मोहल्लों में अवैध रूप से जार वाटर कंपनियां खोल दी जा रही हैं। इस कारण राजधानी रांची का जलस्तर दिन-प्रतिदिन पाताल में पहुंच रहा है। इन प्लांटों को चलाने के लिए जार वाटर प्रतिष्ठान संचालक और कंपनियों द्वारा तीन से चार बोरिंग कराई जाती है। फि र इसके माध्यम से रात-दिन पानी निकाला जाता है। अत्यधिक पानी निकालने से कई जगहों पर आसपास के घरों की बोरिंग सूख जाती है। लेकिन कोई स्पष्ट नियमावली नहीं होने से ऐसे प्लांटों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। कार धोने में पानी बर्बाद
एक ओर जहां लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं वहीं दूसरी ओर कुछ लोग अपनी गाड़ी धोकर पानी की बर्बादी कर रहे हैं। सोसायटी में पीने के पानी से लोग अपनी कार वॉश कर रहे हैं। तालाबों के किनारे में भी ऑटो और दूसरे वाहन को लोग धोने पहुंच जाते हैं। इसके अलावा गली-गली में खुले वॉशिंग सेंटर संचालक पानी का दोहन कर रहे हैं, सो अलग। सब लोग मिल कर पानी की बर्बादी कर रहे हैं। वाहन की धुलाई कर प्रति दिन लाखों लीटर पानी बर्बाद किया जा रहा है। सिटी के विभिन्न इलाकों में 500 से अधिक वाशिंग सेेंटर हैं। इसमें ज्यादातर इल्लीगल ही हैं। वॉशिंग सेंटर में गाड़ी धुलने के बाद सारा पानी नाले से बह जाता है। सेंटर संचालकों ने हार्वेस्टिंग सिस्टम भी नहीं बना रखा है, जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज हो सके।

Posted By: Inextlive