10 रुपए से 3 गोल्ड तक दीपिका की गोल्डेन जर्नी
रांची: पेरिस में चल रहे तीरंदाजी वर्ल्ड कप में रांची की तीरंदाज दीपिका कुमार एक ही दिन में तीन गोल्ड मेडल जीतकर टोक्यो ओलंपिक में पदक की प्रबल दावेदार मानी जाने लगी हैं। यही कारण है कि टोक्यो ओलंपिक में भारत की एकमात्र महिला दावेदार तीरंदाज दीपिका कुमारी के मुरीद पीएम नरेन्द्र मोदी भी हो गए हैं। ये वही दीपिका कुमारी हैं जो जिला स्तर पर आयोजित टूर्नामेंट में अपने ऑटोरिक्शा चालक पिता से महज 10 रुपए लेकर चैंपियन बनने घर से निकल गई थी। इससे पहले पिता ने जाने से मना कर दिया था लेकिन दीपिका को तो चैंपियन बनना था, इसलिए पिता को भी अपनी बेटी की बात माननी पड़ी थी। इस दीपिका के प्रारंभिक जीवन के संघर्ष की कहानी दिल को छूने वाली है। इसीलिए पीएम नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम में इनकी खासतौर पर चर्चा की।
दुनिया की नंबर-1 तीरंदाज रहीं दीपिका
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब प्रतिभा, समर्पण, दृढ़ संकल्प और स्पोर्ट्समैन स्पिरिट एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई चैंपियन बनता है। देश में तो अधिकतर खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों और गांव से निकल कर आते हैं। टोक्यो जा रहे भारतीय ओलंपिक दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है। प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज टीम की सदस्य रांची की दीपिका कुमारी का जिक्र करते हुए कहा कि उनके जीवन का सफर भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। दीपिका के पिता ऑटोरिक्शा चलाते हैं और उनकी मां नर्स हैं। दीपिका अब टोक्यो ओलंपिक में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज है। कभी विश्व की नंबर एक तीरंदाज रही दीपिका के साथ हम सबकी शुभकामनाएं हैं।
प्रारंभिक जीवन संघर्ष से भरा दीपिका कुमारी के प्रारंभिक जीवन के संघर्ष की कहानी दिल को छूने वाली है। सबसे पहले दीपिका जिला स्तरीय टूर्नामेंट में भाग लेना चाहती थी, लेकिन उनके पिता ने साफ मना कर दिया। दीपिका ने हार नहीं मानीं और पिता को उनकी बात माननी पड़ी। पिता ने उन्हें महज दस रुपये दिए और वह लोहरदगा में आयोजित खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने चली गई। इसमें दीपिका ने जीत दर्ज की और इसके बाद वह लगातार सफलता की सीढि़यां चढ़ती गई। नहीं था खुद का धनुषइस टूर्नामेंट ने ही दीपिका के स्टार बनने के दरवाजे खोल दिए। बाद के दिनों में खुद के पास धनुष नहीं होने के कारण वह कई प्रतियोगिता में क्वालिफाई नहीं कर पायी, तब पिता ने कहा कि उनके लिए धनुष खरीद देंगे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि धनुष की कीमत दो लाख रुपये से अधिक होती है। आखिर में दीपिका के लिए धनुष भी खरीद लिया गया और वह तीरंदाजी स्कूल में दाखिल हो गई। इसके बाद दीपिका ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, एक के बाद एक कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत को पदक दिलाए।