German roads in Ranchi: अब रांची में जर्मन रोड, विदेशों की एफडीआर तकनीक का होगा इस्तेमाल
रांची(ब्यूरो)। विदेशों में जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके सड़कें बनाई जाती हैं, उसी तकनीक से अब रांची समेत राज्य भर में सड़कें बनेंगी। झारखंड सरकार विदेशी तकनीक सड़कें धरातल पर उतारने जा रही हैं। इस नई तकनीक को फुल डेप्थ रेक्लेमेशन (एफडीआर) कहते हैं। फिलहाल इस वक्त पूरे देश में एफ डीआर विदेशी तकनीक से सड़कें बन रही हैं। उत्तर प्रदेश में करीब ढाई हजार किमी सड़कें बनाई गई हैं। करोड़ों की मशीन का हो रहा यूज सड़क निर्माण में नीदरलैंड हालैंड निर्मित 10 करोड़ की मशीन प्रयोग में लाई जा रही है। एफ डीआर तकनीक को नीदरलैंड, जर्मन व अमेरिका ने अपनाया है। इस नई तकनीक को झारखंड में पहली बार अपनाया जा रहा है। ऐसे बनेंगी सड़कें
इस नई विधि से पीचिंग नहीं, बल्कि पर्यावरण अनुकूल सड़क होगी। चयनित सड़कों के पुराने मार्ग वाली गिट्टी व मिट्टी को मिक्स कर केमिकल से नई सड़क बनाई जाएगी। सड़क बनाने से पहले संबंधित मार्ग के हर एक किमी की लंबाई के भीतर तीन जगह की गिट्टी व मिट्टी की जांच नव निर्मित विशेष लैब में की जाएगी। इसके बाद 10 करोड़ की लागत वाली विदेशी तकनीक से बनी मशीन में संबंधित सड़क की मिट्टी-गिट्टी आदि मैटिरियल मिक्स कर लैब में तैयार केमिकल मिलाकर सड़क बनाई जाएगी। फिर पत्थर बिछाकर उसे समतल करते हुए और सबसे ऊपरी परत पर अलकतरा बिछाकर उसकी पिचिंग की जाती थी। लेकिन अब एफडीआर तकनीक में थोड़ा बदलाव होगा। अब अलकतरा और स्टोन को उखाड़कर फेंका नहीं जाएगा। बल्कि सीमेंट से लेकर अन्य केमिकल स्टेबलाइजर को मिलाकर उसे मजबूती प्रदान की जाती है। इसके बाद सबसे ऊपरी परत पर अलकतरा बिछाया जाता है। कम खर्च में बनेंगी सड़केंएफ डीआर तकनीक से सड़क बनाने के लिए ठेकेदारों को नोएडा या गुजरात की कंपनी से मशीन हायर करनी होगी। सड़क निर्माण में प्रति किमी 90 से 91 लाख रुपये खर्च आएंगे। वर्तमान में यही सड़कें 99 लाख से एक करोड़ रुपए प्रति किमी की लागत से बनती हैं। लेकिन, इस नई तकनीक से सरकार को प्रति किलोमीटर 9 से 10 लख रुपये की बचत होगी।एक्सपट्र्स की ट्रेनिंग पूरीएफ डीआर की आधुनिक तकनीक उतर प्रदेश में काफी सफल है। इसलिए झारखंड में इस तकनीक को अपनाया गया है। इंजीनियर, कंसल्टेंट व टेक्निकल एक्सपट्र्स ट्रेनिंग पूरी कर चुके हैं। झारखंड के प्रधान सचिव के निर्देश पर जांच के लिए लैब तैयार कराया गया है। एफ डीआर तकनीक से सड़क बननी शुरू हो जाएगी। इस पर 8 से 10 टन वजन वाले वाहन चल सकेंगे।
मेनटेनेंस की ज्यादा जरूरत नहींएफडीआर से बनने वाली सड़कों को मेनटेनेंस करने की 'यादा जरूरत नहीं होगी। अब तक बनने वाली सड़कों में बिटुमिनस मिश्रण की एक पतली परत रहती है। यह यातायात और पर्यावरण, गर्मी और नमी के प्रभाव से आसानी से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। पानी आसानी से ऐसी सड़कों की निचली परत में पहुंचकर नुकसान पहुंचाता है। इस कारण से अक्सर सड़कों में गड्ढे और दरार पड़ जाते हैं। एफडीआर के उपयोग से एक मजबूत सीमेंटेड स्थिर लेयर मिलता है। इस तकनीक से बनने वाली सड़कों पर खर्च भी कम आएगा। कारण की सड़क बनाने के लिए अक्सर पत्थरों की कमी महसूस की जाती है। सड़क निर्माण में इस्तेमाल होने वाले स्टोन चिप्स झारखंड, पश्चिम बंगाल से लाए जाते हैं। इस कारण ढुलाई से लेकर अन्य चीजों पर 'यादा खर्च पड़ता है। इस तकनीक से लगभग 20 परसेंट कम खर्च पड़ेगा।