स्टूडेंट्स ने मार्शल आर्ट की प्रस्तुती


रांची (ब्यूरो) । जिस मार्शल आर्ट को सीखने और पारंगत होने के लिए लोग देश विदेश जाया करते हैं.ये मार्शल आर्ट भारत की ही देन हैं। इसे भारत के दक्षिण में कलारिपयट्टू के नाम से जाना जाता है। जो कि सभी तरह के मार्शल आर्ट की जननी है। कलारिपयट्टू एक बेहद प्राचीन कला है। भारतीय परंपरा और जनश्रुति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या के असली जनक माने जाते हैं। छात्रों के सर्वांगीण विकास और उन्हें उनकी सभ्यता- संस्कृति का बोध कराने के लिए जीडी गोयनका विद्यालय में पांच दिवसीय कलारिपयट्टू मार्शल आर्ट कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। विश्व में सीखने का काम
कार्यक्रम में कलरीपयट्टू के आठवीं पीढ़ी के कृष्ण दास एवं भारत के भूपेश मुख्य अतिथि थे। कृष्ण दास के गुरु शंकराचार्य मेलन जो वल्लभाभट्टकलारी के संस्थापक हैं, लंबे समय से उनकी कई पीढिय़ां इस युद्ध कला को संपूर्ण विश्व में सीखने का कार्य कर रही हैं। इन्होंने अपनी कार्यशाला के अंतर्गत छात्रों को नेरकल,वेट्टूचूवणु गजावदिवू चुम्माथदिकल तथा कई एनिमल पोस्चर जैसे सिंहावदिवू, मयूरावदिवू, मत्स्यवदिवू, अश्वावदिवू, माजरावदिवूडु आदि योगासन सिखाया। कृष्ण दास ने कलारीपायट्टू की विशेषताओं से छात्रों को परिचित कराते हुए बताया यह शरीर को मजबूत बनाता है। साथ ही इसके निरंतर अभ्यास से शरीर सुडौल और गठीला होता है। चार दिनों के निरंतर अभ्यास के पश्चात कार्यशाला में सीखे गए अभ्यास को पांचवें दिन छात्रों ने विद्यालय में प्रस्तुत किया। छात्रों की प्रदर्शनी देखकर विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर सुनील कुमार ने छात्रों की सराहना की तथा उचित शिक्षा और ज्ञान के संवर्धन के लिए योगासन का अभ्यास नितांत आवश्यक बताया। विद्यालय के वाइस चेयरमैन अमन सिंह ने कहा कि शिक्षा ही आपकी सफलता का द्वार है और एक सर्वोत्तम विद्यालय का कर्तव्य है कि बच्चों को सर्वांगीण शिक्षा प्रदान करें ताकि उनका मानसिक और नैतिक विकास संभव हो सके। जीडी गोयनका विद्यालय छात्रों के इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था के लिए निरंतर प्रयास रत रहेगा इस बात का भी आश्वासन विद्यालय के चेयरमैन मदन सिंह द्वारा दिया गया।

Posted By: Inextlive