नहीं होती किसी प्रकार की मॉनिटरिंग पैसेंजर्स परेशान. सिस्टम नहीं होने से मनमानी करने लगे हैं बाइक राइडर. सिटी में दौड़ रहे हैं हजारों बाइक राइडर. डीटीओ के पास किसी का रिकार्ड नहीं.


रांची(ब्यूरो)। सिटी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधन लगातार बढ़ रहे हैं। पहले जहां सिर्फ ऑटो, ई-रिक्शा और लोकल बस ही परिवहन के साधन हुआ करते थे, वहीं अब कैब, ओला, उबर जैसी प्राइवेट संस्थाओं ने भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में जगह बना ली है। इन दिनों टू व्हीलर को भी ओला बाइक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे लोगों को आने-जाने के साधन के ऑप्शन तो मिल रहे हैं लेकिन दूसरी ओर ओला बाइक राइडर का किसी तरह का कोई सिस्टम डेवलप नहीं होने की वजह से इनके द्वारा की जाने वाली मनमानी पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। दरअसल, इन दिनों लगातार ओला बाइक राइडर्स द्वारा पैैसेंजर से बदतमीजी की शिकायतें सामने आ रही हैं। लेकिन न तो डीटीओ, न आरटीओ और न ही जिला प्रशासन इसे गंभीरता से ले रहा है। बीते महीने भर में चार लोगों के साथ ओला बाइक राइडर्स ने बदतमीजी की। लेकिन कोई नियम नहीं होने के कारण पीडि़त कहीं शिकायत नहीं कर सका। पैसेंजर्स से बहस
राजधानी रांची में पब्लिक ट्रांसपोर्ट लिमिटेड कंपनी काम कर रही है, जिसके अंतर्गत लोग ओला, उबर, रैपिडो समेत अन्य प्राइवेट बाइक टैक्सी का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से ओला बाइक राइडर्स द्वारा मिसबिहेव करने की वजह से बाइक से सफर करने वाले पैसेंजर्स परेशान हैं। ओला बाइक राइडर्स द्वारा पैसेंजर के साथ बहस तो आम बात हो गई है। फेयर को लेकर बाइक चालक पैसेंजर से उलझ पड़ते हैं। लोगों की शिकायत है कि ऑन लाइन फेयर कम रहता है, लेकिन बाइक चालक ज्यादा पैसे की मांग करते हैं। इंद्रपुरी के रहने वाले अंकुश यादव ने बताया कि वे लगातार ओला या रैपिडो से ही आना-जाना करते हैं। लेकिन बीते दस दिनों में दो बार बाइक चालक द्वारा मिसबिहेव किया गया। कोई सिस्टम नहीं होने से वे इसकी शिकायत भी कहीं दर्ज नहीं करा पाए। अब उन्होंने बाइक चालक हायर करना छोड़ दिया है।मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं


ओला या रैपिडो में चलने वाले टू व्हीलर कीे कोई मॉनिटरिंग नहीं होती है। जो युवक या युवती बाइक या स्कूटी चला रहे हैं, उनकी छवि कैसी है, व्हीकल का रजिस्टे्रशन है या नहीं, ड्राइवर के पास लाइसेंस है या नहीं, समेत अन्य किसी भी बिंदु पर बाइक राइडर की जांच नहीं की जाती। सिर्फ ओला या रैपिडो का ऐप इंस्टॉल करना है और कनेक्ट हो जाना है एजेंसी से। ऐप में रजिस्ट्रेशन के लिए कुछ डॉक्यूमेंट जरूर मांगे जाते हैं, लेकिन वह डाक्यूमेंट सही है या फर्जी इसकी किसी तरह से जांच नहीं होती है। मॉनिटरिंग का कोई सिस्टम नहीं होने के कारण ही ये लोग मनमानी करने लगे हैं। पैसेंजर से बहस करना और भाड़े से अधिक रुपए की मांग करना इनकी रोज की आदत बन गई है। प्राइवेट का कामर्शियल यूजराजधानी में हजारों की संख्या में ओला और रैपिडो बाइक दौड़ रही हैं। लेकिन किसी भी बाइक का कामर्शियल रजिस्ट्रेशन नहीं है। प्राइवेट रजिस्ट्रेशन वाली नार्मल बाइक को ही ओला राइड के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे समझा जा सकता है कि कैसे कंपनी और चालक बंपर कमाई कर रहे हैं। वहीं परिवहन विभाग को रेवेन्यू का नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसे लेकर परिवहन विभाग भी मौन है। इसी का फायदा ओला कंपनी के संचालक उठा रहे हैं। केस-1अनंत शर्मा ने चुटिया से मेन रोड के लिए ओला बाइक की बुकिंग की। जिसमें बुकिंग फेयर 33 रुपए दिखाया। बाइक के चालक ने उनसे 90 रुपए किराया मांगा। इसे लेकर दोनों में बहस भी हुई। केस-2राजीव कुमार ने ओला बाइक बुक की। दो बार चालक ने किराया कम बोलकर कैंसल करा दिया। तीसरी बुकिंग में ड्राइवर आया तो ज्यादा पैसे की मांग की। नहीं जाने पर बहस भी की।

Posted By: Inextlive