बिष्टुपुर के रोड स्थित श्रीलेदर्स शोरूम में सुरेश डे की जयंती मनाई गई.


जमशेदपुर (ब्यूरो): 21 अप्रैल को हर साल श्रीलेदर्स परिवार अपने संस्थापक सुरेश डे के जन्म दिन को संस्थापक दिवस के रुप में धूमधाम से मनाता आ रहा है। अपनी कर्मभूमि जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाले जोशपूर्ण युवा सुरेश दा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तब देश स्वाधीनता संग्राम की ज्वाला में धडक़ रहा था, युवा खून उबाल पर था और इसी जोश में चंद साथियों के साथ सुरेश दा ने अंग्रेजों से मुकाबला करने का संकल्प ले लिया, सशस्त्र अंग्रेजी सेना से निहत्थे लडऩा उन्हें मंजूर नहीं था, इसलिए चटगांव जो अब बांग्लादेश में है का शस्त्रागार लूट लिया और सशस्त्रधारी हो गए, बौखलाई ब्रिटिश सेना ने आक्रमण किया, जलालाबाद की पहाडिय़ों पर तपती गर्मी में भूखे प्यासे रहते हुए भी सुरेश दा और उनके साथियों ने घुटने नहीं टेके, मास्टर दा सूर्य सेन के नेतृत्व में संघर्ष हुआ कई जख्मी हुए और कईयों ने मौत को हस्ते हुए गले लगाया, सुरेश दा को बाएं हाथ पर गोली लगी, मरा समझकर सभी छोड़ गए थे, पर सुरेश दा के जीवन का मकसद अभी अधूरा था, कुछ समय बाद गिरफ्तारी हुई पर साक्ष्य के अभाव में जेल से रिहा हो गए, जब देश आजाद हो गया तब सन् 1952 में जमशेदपुर के साकची में श्रीलेदर्स की स्थापना हुई, आज 70 साल से अधिक हो गए, सुरेश दा अब हमारे बीच नहीं है पर उनके आदर्शों और उनकी बातों पर श्रीलेदर्स परिवार आज भी कायम है। उक्त बातें श्रीलेदर्स के पार्टनर शेखर डे ने बिष्टुपुर, के रोड स्थित श्रीलेदर्स शोरूम में आरोजित सुरेश डे की जयंती पर कही। इस अवसर पर शेखर डे, सुशांतो डे, ज्योस्तना डे, संजय मिश्रा, पी के नंदी, अरिजीत सरकार, गोविंद राव के अलावा कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। अलग पहचान दिलाना हमारा लक्ष्य : शेखर डे
शेखर डे ने बताया आज हम अपने संस्थापक के पदचिन्ह पर चल कर आगे बढ़ रहे है। जमशेदपुर की पहचान दो कंपनियों से है, एक टाटा स्टील और दूसरा श्रीलेदर्स! संस्थापक सुरेश डे की दो मूल मंत्र वाजिब दाम - विश्वमान को श्रीलेदर्स परिवार आगे बढ़ाने में लगी हुई है। आज श्रीलेदर्स के शोरूम देश के हर कोने के साथ विदेशों में भी स्थापित हो चुकी है। कहा विश्व युद्ध के बाद जापान जिस प्रकार आगे बढ़ा है उसी प्रकार श्रीलेदर्स भी अपना दो पंख के सहारे अपने व्यवसाय को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने में लगा है, जिसमे एक तरफ संथापक सुरेश डे और दूसरी तरफ उनकी धर्मपत्नी किरणमय डे का योगदान है। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें नमन करते है।श्रीलेदर्स ने समय के साथ किया बदलाव : सुशांतो डेइस मौके पर अपने दादा और संस्थापक सुरेश डे को नमन करते हुए श्रीलेदर्स के पार्टनर सुशांतो डे ने कहा कि, हमे अपने पुर्वजों के बलिदान को याद करते हुए उनके द्वारा किए गए कार्य का अनुश्रण करते हुए आगे बढऩा चाहिए। श्रीलेदर्स समय और बाजार में उपलध्य तकनीकी का उपयोग कर अपने व्यवसाय बढ़ाने में विश्वास रखती है। आज हम ई कॉमर्स प्लेटफार्म के जरिए देश के कोने कोने में अपने उत्पाद को पहुंचा रहे हैं।

Posted By: Inextlive