ढाई साल बाद भी नहीं शुरू हुई एनआइसीयू, कैसे बचेगी बच्चों की जान
जमशेदपुर : 29 माह बाद भी महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में एनआइसीयू (न्यू बोर्न इंटेंसिव केयर यूनिट) और पीडियाट्रिक्स इंटेंसिव यूनिट नहीं खुल सकी है। नए भवन में यह आधा-अधूरा बनकर पड़ी हुई है। बच्चों की जान बचाने वाली एनआइसीयू कब खुलेगी, इसका भी जवाब किसी के पास नहीं है। कर्मचारियों का अभाव तो कोई उपकरण की कमी बता रहा है। इधर, बच्चों की लगातार मौत हो रही है। पिछले 25 अगस्त 2017 को एमजीएम अस्पताल में हुई बच्चों की मौत के बाद रांची से निरीक्षण करने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आए थे। उन्होंने जल्द से जल्द 20 बेड की एनआइसीयू खोलने का वादा किया था। इस क्षेत्र में थोड़ी कवायद भी हुई। शुरुआती दौर का कार्य देखकर लगा कि तीन माह में यह चालू हो जाएगी। लेकिन, ऐसा हो न सका। कार्य बंद होने के साथ अब वहां सन्नाटा पसरा है।
बच्चों के बेहतर इलाज के लिए नहीं है संसाधन
पूर्वी सिंहभूम जिले में बच्चों की जान बचाने क लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। एमजीएम अस्पताल को छोड़ कर किसी भी सरकारी अस्पताल में एनआइसीयू-पीआइसीयू की सुविधा नहीं है। फिलहाल एमजीएम अस्पताल में छह बेड की सुविधा है। यह पर्याप्त नहीं है। इससे बच्चों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। खासमहल स्थित सदर अस्पताल में भी दस बेड की एनआइसीयू खोलने की बात है। यह कब खुलेगी इसका भी जवाब किसी के पास नहीं है। काम काफी धीमी गति से चल रहा है।
नहीं बढ़ी नर्सो की संख्या, टेक्नीशियन भी नहीं एमजीएम अस्पताल में नर्सो की संख्या लगातार घट रही है। जबकि, 29 माह पूर्व ही नर्सो की संख्या बढ़ाने की बात स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने कही थी। यहां नर्सो के 225 पद खाली हैं। शिशु रोग विभाग में भी नर्सो की भारी कमी है। एनआइसीयू में अलग से चिकित्सकों की टीम होती है, जो 24 घंटे तैनात रहती है। लेकिन, यहां ऐसा नहीं है। टेक्नीशियन तो एक भी नहीं हैं। भगवान भरोसे ही मरीजों का इलाज हो रहा है। दवा की किल्लत व पानी की समस्या बरकरार एमजीएम अस्पताल में दवा की किल्लत बरकरार है। नतीजतन मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है। इसी तरह, पानी की समस्या भी वर्षो से कायम है। 29 माह पूर्व सचिव ने दोनों समस्याओं को खत्म करने की बात कही थी। लेकिन, स्थिति यथावत है। रोजाना 20-25 प्रसव, 12 फीसद समय से पूर्व होताएमजीएम अस्पताल के महिला एवं प्रसूति विभाग का आंकड़ा देखा जाए तो सामान्य व सर्जरी के माध्यम से प्रतिदिन करीब 20-25 प्रसव होते हैं। इसमें 10 से 12 फीसद प्रसव समय पूर्व होते हैं। इसमें चार से पांच फीसद नवजातों की मौत हो जाती है। ये नवजात कई तरह की बीमारियों के शिकार होते हैं। गंभीर अवस्था में जन्म लेने वाले बच्चों को तत्काल एनआइसीयू की जरूरत होती है। इसमें देर होने से उनकी मौत हो जाती है।
मैन पावर की कमी है। नई एनआइसीयू में ऑक्सीजन पाइप नहीं पहुंची है। इस कारण एनआइसीयू खोलने में परेशानी हो रही है। उपकरण की भी जरूरत है। प्रस्ताव बनाकर विभाग को भेजा गया है। - डॉ। संजय कुमार, अधीक्षक, एमजीएम अस्पताल