JAMSHEDPUR: शरद पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को शहर और आसपास के क्षेत्र में कोजागरी लक्खी पूजा का आयोजन किया गया। मौके पर बंगाली समाज के हर परिवार ने अपने घर में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा पूरी श्रद्धा व भक्तिभाव से की। शुक्रवार की शाम 5.20 बजे पूर्णिमा लगते ही पूजा मंडपों के साथ-साथ घरों में भी पूजा शुरू हो गई। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धन की देवी लक्ष्मी घरों में प्रवेश करती हैं। इसलिए घर-घर में आकर्षक अल्पना के साथ देवी लक्ष्मी के पैरों की छाप बनाई गई। भजन-कीर्तन के साथ लक्ष्मी के घर आने का आह्वान किया गया। कोरोना महामारी के कारण शहर के अधिकांश घरों में प्रतिमा स्थापित नहीं की गई बल्कि मां लक्खी की तस्वीर से ही पूजा संपन्न की गई। इसके लिए सुबह से ही साफ-सफाई कर पूरे घर व आंगन में सुंदर अल्पना के साथ मां लक्खी के पैर अंकित किए गए। इस अवसर पर पूजा स्थल पर धान की बाली रखा गया। पूजा के दौरान देवी को नारियल का लड्डू, तिल का लड्डू, अन्न, सब्जी, भुजिया, चटनी, खीर, मिठाई, फल आदि का भोग लगाया गया। पंडितों के मंचोच्चारण के बाद महिलाएं कथा भी सुनी। शारदीया नवरात्र के बाद आने वाले शरद पूर्णिमा के मौके पर जहां बंगाली समाज के लोग कोजागरी लक्खी पूजा करते हैं, वहीं मिथिलांचल के लोग कोजागरा और तेलुगु समाज के लोग गौरी पूजा करते हैं।

कोजागरा पूजा में चढ़ाया मखाना, मिस्नी, पान का नैवेद्य

शरद पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को मिथिलांचल के लोगों ने कोजागरा पूजा की। श्रद्धालु दिन भर उपवास पर रहे। बिष्टुपुर परमहंस लक्ष्मीनाथ गोस्वामी मंदिर में कोजागरा पूजा के मौके पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। कोरोना संक्रमण को देखते हुए मंदिर में व्रतियों की भीड़ नहीं लगने दिया गया। सरकारी गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए यहां पूजा-अर्चना के बाद भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया गया। शाम से ही सुहागिनें नई कपड़ा पहनकर मां लक्ष्मी की पूजा किए। पूजा के दौरान मखाना, मिस्नी, पान का नैवेद्य चढ़ाया गया। कोजागरा के लिए नवविवाहित व्रती की मायके से नई साड़ी, मखाना, मिस्नी, छाता, जूता, आभूषण आदि पहुंचाया गया। शहर के नवविवाहितों के घर पहली बार यह त्योहार विशेष धूमधाम से मनाया गया। नवदंपती का जीवन सुखमय हो और मां लक्ष्मी की कृपा उनपर बनी रहे, उनका घर धन-धान्य परिपूर्ण रहे, इसी कामना के साथ लोग कोजागरा का त्योहार मनाते हैं। इस अवसर पर कौड़ी खेलने की भी परंपरा है। शरद पूर्णिमा शनिवार की शाम 7:28 बजे तक रहेगा।

खुले आसमान के नीचे रखी खीर

ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को आसमान से अमृत की बूंदें बरसती हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे खीर रखने की परंपरा है। प्रचलित परंपरा के अनुसार अगली सुबह जो भी व्यक्ति अमृत युक्त इस खीर का सेवन करता है, वह सभी रोगों से मुक्त हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। यह पूर्णिमा साल में आने वाली सभी पूर्णिमा में श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और चंद्रमा की किरणें अमृत बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा की रात को ही श्रीकृष्ण वृंदावन में गोपियों संग महारास रचाते हैं।

Posted By: Inextlive