पुजारी ने की थी केरा मंदिर की मूर्ति की चोरी
ष्ट॥न्ढ्ढक्चन्स्न्: कोल्हान के प्रसिद्ध मां केरा मंदिर की मूर्ति चोरी की घटना का खुलासा पुलिस ने किया है। पुलिस के अनुसार इस मंदिर का पुजारी ही चोर निकला। इस घटना ने पुलिस को सकते में डाल दिया था। चार सौ साल पुराने मूर्ति चोरी की घटना से कई सवाल लोगों के जेहन में बैठ गया था। लेकिन पुलिस अधीक्षक चंदन कुमार झा के द्वारा गठित एसआइटी टीम ने 10 दिन के अंदर ही मां केरा की मूर्ति चोरी करने वाले मंदिर के पुजारी दुर्गाचरण कर उर्फ सिरका को ही पकड़ लिया। पुजारी सिरका के पास से पुलिस ने चोरी कर रखे मूर्ति के साथ टूटा हुआ ताला व सरिया भी बरामद किया है।
24 नवंबर को हुई थी चोरीमंगलवार को चाईबासा एसपी चंदन कुमार झा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 24 नवंबर की रात में अज्ञात अपराधकर्मी द्वारा चक्रधरपुर थानान्तर्गत केरा मंदिर का ताला तोड़कर केरा मां की मूर्ति चोरी कर ली गई थी। मंदिर में मूर्ति के अतिरिक्त अन्य कोई सामान की चोरी नही हुई थी। केरा मां की मूर्ति विगत चार सौ वर्ष पुराना होने की बात बताया गयी है। घटना में संलिप्त अपराधियों की गिरफ्तारी और मूर्ति की बरामदगी के लिए पुलिस एक एसआईटी टीम का गठन अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी चक्रधरपुर सकलदेव राम के नेतृत्व में बना कर जांच किया गया। टीम प्रभारी के रूप में एसडीपीओ सकलदेव राम ने मामले को बारिकी से देखते हुए अभियुक्तों के विरूद्ध गिरफ्तारी के लिए लगातार छापामारी की गई। अनुसंधान के क्रम में ही यह बात प्रकाश में आयी है कि केरा मंदिर में लगे दोनों तालों को अपराधियों द्वारा तोड़ा नहीं गया है, बल्कि ताला को चाभी से खोलकर उसे नुकीले कड़े हथियार से घटनास्थल के आस-पास तोड़ा गया है। इसी बीच सूचना प्राप्त हुई कि उक्त घटना में केरा मंदिर के पुजारी दुर्गाचरण कर उर्फ सिरका की संलिप्तता है। वह चक्रधरपुर में रहता है जो प्रतिदिन चक्रधरपुर से केरा मंदिर में जाकर पूजा करता है तथा पूजा करने के बाद पुन: संध्या में घर वापस चक्रधरपुर चला आता है।
कड़ाई से पूछताछ में टूटाएसपी ने बताया कि उनके निर्देश पर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी चक्रधरपुर द्वारा केरा मंदिर के पुजारी दुर्गाचरण कर उर्फ सिरका को पूछताछ के लिए चक्रधरपुर थाना लेकर आई। कड़ाई से पूछताछ करने पर उसने मंदिर में मूर्ति चोरी में संलिप्तता स्वीकार कर ली। उसने बताया कि 24 नवंबर की शाम को ही केरा मंदिर में आरती लगाने के बाद मूर्ति को पुजारी लाल कपड़े लपेटकर मंदिर के पीछे नदी में बने पुल के नीचे पानी एवं मिट्टी के अंदर छुपाकर रख दिया और अपने घर से संबल को लाकर मंदिर में लगे दोनों ताला को तोड़कर मंदिर के दरवाजा के पास रख दिया और चक्रधरपुर आ गया।