भाषा संप्रेषण का माध्यम नहीं, होती हैं इतिहास की सलवटें
जमशेदपुर (ब्यूरो): आदित्यपुर स्थित श्रीनाथ विश्वविद्यालय में चल रहे छठे अंतरराष्ट्रीय श्रीनाथ हिंदी महोत्सव के दूसरे दिन &भारत का बहुभाषिक समाज, संस्कृति और हिंदी साहित्य&य विषय पर चिंतन मनन हुआ। वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय हिंदी विभाग की आचार्य डॉ। अल्पना मिश्रा और बीएचयू के कृतकार्य आचार्य डॉ। वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी मौजूद थे। सांस्कृतिक एकता कारण
डॉ वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी का भक्ति कालीन साहित्य में सूर, जायसी, तुलसी जैसे कवियों का नाम उल्लेखनीय रूप से लिया जा सकता है। उस समय ब्रज अवधि जो बोलियां थीं, वह केवल बोलियां नहीं थीं, बल्कि एक परिनिष्ठित भाषा थी। विश्व में जहां कई देशों ने अपना अस्तित्व खो दिया वहीं आज यदि विश्व में हमारे निशान बचे हैं तो इसका एक बहुत बड़ा कारण है हमारी सांस्कृतिक एकता। भक्ति काल में सूर, तुलसी, जायसी का नाम उल्लेखनीय है और उस समय बोली जाने वाली ब्रज और अवधी भाषा के केवल भाषा नहीं है बल्कि एक परिनिष्ठित भाषा भी है। बचाने की चुनौती
डॉ। अल्पना मिश्रा ने कहा कि भारत में 1,000 से अधिक भाषाएं बोली जा रही हैं। कुछ तो विलुप्त हो रही हैं। अत: हमारी चुनौती है कि इसे कैसे बचाया जाए? साथ ही उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भाषा केवल संप्रेषण का साधन मात्र नहीं है। भाषा के भीतर उसके इतिहास की करवटें एवं समय काल की सलवटे होती हैं। साथ ही उसके अंदर कई उतार-चढ़ाव भी निहित होते हैं। इन सब से मिलकर भाषा एक परिवेश निर्मित करती है। आपकी मानसिकता, आपके समाज का मनोविज्ञान यह सब भाषा के भीतर छिपी हुई है। विभिन्न प्रतियोगिताएं हुईं दूसरे दिन भी विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन हुआ। इसके तहत उल्टा पुल्टा, शब्द सरिता, कोलाज कला, कहानी से कविता तक, भाषा रूपांतरण, विज्ञापन रचना, प्रश्नोत्तरी आदि शामिल थे। छठा अंतरराष्ट्रीय श्रीनाथ हिंदी महोत्सव के दूसरे दिन श्रीनाथ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति सुखदेव महतो, कुलपति डॉ। गोविंद महतो, कुलसचिव डॉ। भाव्या भूषण, कौशिक मिश्रा, देश विदेश से आए प्रतिभागी, विभिन्न महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि, शहर के कई वरिष्ठ साहित्यकार सहित अन्य मौजूद रहे। चिंतन मनन सत्र का समन्वय करीम सिटी, हिंदी विभाग की प्राध्यापक डॉ संध्या सिन्हा ने किया ।