अगर आप असफल हो गए हैं, तो आपके लिए है यह महत्वपूर्ण संदेश
सी.राजगोपालाचारी। अमृत तत्व की प्राप्ति के योग्य यथार्थ गीता यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ। समदुखसुखं धीरं सोअमृतत्वाय कल्पते।। हे पुरुष श्रेष्ठ, दुख-सुख को समान समझनेवाले जिस धीर पुरुष को इंद्रियों और विषयों के संयोग व्यथित नहीं कर पाते, वह मृत्यु से परे अमृत-तत्व की प्राप्ति के योग्य हो जाता है। यहां श्रीकृष्ण ने एक उपलब्धि अमृत की चर्चा की।
अर्जुन सोचते थे कि युद्ध के परिणाम में स्वर्ग मिलेगा या पृथ्वी, किंतु श्रीकृष्ण कहते हैं कि न स्वर्ग मिलेगा और न पृथ्वी, बल्कि अमृत मिलेगा।भगवान की भक्ति में मौजूद शक्ति को पहचानिए, बाकी शक्तियां लगेंगी बेकार!परिपक्वता को प्राप्त करना ही दिव्यता है