बैलगाड़ी से शुरु हुआ इसरो का सफर आज अंतरिक्ष तक पहुंच गया है। एक साथ 104 सैटेलाइट को लॉन्च कर भारत ने नई उपलब्धि हासिल कर ली है। हालांकि यह इतना आसान नहीं था। भारतीय वैज्ञानिकों ने वो दिन भी देखे जब उन्हें रॉकेट ले जाने के लिए साइकिल का सहारा लेना पड़ता था। तो आइए देखें समय के साथ-साथ इसरो ने कैसे की तरक्की...
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लॉन्चिंग पैड बनाया था। समुद्र किनारे खड़े नारियल के पेड़ों पर इस रॉकेट को बांधा गया था। और फिर सभी वैज्ञानिकों ने मिलकर इसे लॉन्च किया। हमारे वैज्ञानिकों के पास अपना दफ्तर नहीं था, वे कैथोलिक चर्च सेंट मैरी मुख्य कार्यालय में बैठकर सारी प्लानिंग करते थे। और अब पूरे भारत में इसरो के 13 सेंटर हैं। इसके बाद 1990 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) तैयार किया। पहली बार पीएसएलवी के जरिए 1993 में पहला उपग्रह IRS-1E ऑर्बिट में भेजा गया। पीएसएलवी को दुनिया का सबसे भरोसेमंद लॉन्चिंग व्हीकल माना जाता है।
चंद्रयान मिशन पूरा होने के बाद अब मंगल पर पहुंचने की बारी थी। इसरो के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार पहले प्रयास में मंगल ग्रह के सफर को पूरा कर लिया। अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली थी।
इसरो ने अपने सबसे सफल रॉकेट पीएसएलवी की मदद से 104 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किए। पीएसएलवी के इस सफर में भारत के तीन और 101 विदेशी सेटेलाइट शामिल थे। विदेशी सेटेलाइट में से 96 अमेरिका की दो कंपनियों के थे। जबकि इजरायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक सेटेलाइट शामिल थे।
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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari