अमरीका इराक़ और सीरिया में जिहादी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट की बढ़ती चुनौती का ख़तरा समझ रहा है.


इसे नेस्तनाबूद करने के लिए अमरीका इराक़ के असंतुष्ट सुन्नियों के साथ साथ ही ईरान और सीरिया में बशर अल असद के साथ भी अप्रत्याशित गठजोड़ करने से नहीं चूकेगा.पढ़ें जिम म्यूर का विश्लेषणअमरीका के रक्षा प्रमुख मानते हैं कि इस्लामिक स्टेट और उनकी 'ख़िलाफ़त' ख़त्म करने के लिए एक लंबा और जटिल संघर्ष लाज़िमी है और इसके लिए सीरिया और इराक़ दोनों ही देशों में हस्तक्षेप करना पड़ेगा.अगर ऐसा होता है तो दोनों ही देशों में अलग तरह की जटिल समस्याओं से जूझना पड़ेगा. कई राजनीतिक व्यवस्थाएं, रिश्ते और गठबंधन बदलने होंगे.इसमें वक़्त लगेगा और शायद काफ़ी लंबा वक़्त लगेगा. जैसे जैसे दिन गुज़र रहे हैं, यह समस्या बढ़ने ही वाली है क्योंकि इस्लामिक स्टेट (आईएस) लड़ाके ख़ुद को और मज़बूत करेंगे.अमरीका के सैन्य प्रमुखों ने भी यह माना है कि आईएस अपने मूल संगठन अल क़ायदा के मुक़ाबले ज़्यादा ख़तरनाक हैं.


उनका दोनों देशों में ख़ासा दखल है और ये लाखों की आबादी वाले शहरों और कस्बों के प्रशासन पर नियंत्रण रखते हैं.लेकिन क़ुर्दों का मामला अपेक्षाकृत सरल है. दशकों से क़ुर्द पश्चिम के साथ सहयोग कर रहे हैं और वे प्राकृतिक भागीदार भी हैं.

हालांकि यही रणनीति पूरे इराक़ पर या सीरिया पर लागू नहीं हो सकती.इराक़ संघर्ष का गढ़ बन गया है और देश के ज़्यादातर हिस्से में सांप्रदायिक गृह युद्ध जैसी स्थिति है जो बग़दाद के शियाबहुल प्रतिष्ठानों और निवर्तमान प्रधानमंत्री नूरी मलिकी की विभाजनकारी नीतियों से नाराज़ इराक़ी सुन्नियों के बीच चल रहा है.नूरी मलिकी तब तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री की भूमिका में रहेंगे, जब तक उनके उत्तराधिकारी हैदर अल अबादी नई सरकार का गठन नहीं कर लेते.अनूठा गठबंधनआईएस चरमपंथी बग़दाद सरकार के ख़िलाफ़ इराक़ के सुन्नी समुदाय के लोगों के असंतोष को भुनाने में सक्षम रहे हैं.सुन्नी विद्रोहियों की अपनी वाजिब शिकायतें आईएस कट्टरपंथियों से काफ़ी मिलती हैं. ऐसे में अगर अमरीका आईएस के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलता है, तो मुमकिन है कि इससे इराक़ी सुन्नियों में भी नाराज़गी बढ़ेगी और गृहयुद्ध में वे भी एक पक्ष का समर्थन करते देखे जाएंगे.इसी वजह से अमरीका इराक़ में पूर्ण बहुमत वाली सरकार देखना चाहता है क्योंकि इससे असंतुलन की स्थिति खत्म होगी और आईएस के ख़िलाफ़ एकीकृत राष्ट्रीय अभियान की संभावना बनेगी.

इस तरह अमरीका ने इराक़ में पीकेके की तरह ही ख़ामोशी से एक टीम बना ली है जिसे आधिकारिक तौर पर वॉशिंगटन और इसका नाटो सहयोगी तुर्की एक चरमपंथी संगठन मानता है.अगला चरण क्या होगा? क्या ईरान और दूरदराज़ के शिया लड़ाकों मसलन हिजबुल्लाह के साथ अमरीका के हित एक होंगे?कई अजीबोग़रीब चीज़ें हुई हैं. आईएस की बढ़ती चुनौती देखते हुए कई और भी हैरतअंगेज़ चीजें हो सकती हैं.यही बात सीरिया के लिए भी लागू होती है, जहां सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर का संरक्षण पाने के लिए कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ने के लिए साझेदार की गुंजाइश का दावा कर रही है जिस पर पूरे सीरियाई विपक्ष को "चरमपंथी" करार देने के लिए प्रोत्साहन देने का आरोप लगता रहा है.क्या सचमुच आईएस का ख़तरा इतना बड़ा है कि पश्चिमी शक्तियां बशर अल असद से अपना विरोध भूल जाएंगी और उन्हें अपनी टीम में लेकर उनके विरोधी दलों पर यह दबाव बनाएंगी कि वे सरकारी सेना के साथ मिलकर आईएस के ख़िलाफ़ पूर्ण मोर्चा खोल दें?सीरिया में हवाई हमलों से ज़्यादा हासिल नहीं हो सकता और सबको साथ लिए बग़ैर आईएस का प्रभुत्व ख़त्म करना भी काफ़ी मुश्किल है.मगर हालिया अनुभव भी अकल्पनीय ही थे. गंभीर चुनौतियों की वजह से कई कट्टर गठजोड़ों की संभावना बन सकती है भले ही यह चीज़ असंभव लगे.

Posted By: Satyendra Kumar Singh