इराक के तानाशाही शासक सद्दाम हुसैन को सजा देने वाले कुर्दिश जज को आईएसआईएस ने फांसी दे दी है. इस बात की पुष्टि सद्दाम हुसैन के करीबी रहे इब्राहिम अल-दौरी के फेसबुक एकाउंट से की गई है.


अल-दौरी के फेसबुक एकाउंट से मिली जानकारीसद्दाम हुसैन के करीबी रहे इब्राहिम अल-दौरी के फेसबुक अकाउंट से मिली जज रहमान को फांसी की पुष्टि हुई है. जज अब्दुल रहमान ने 2007 में सद्दाम हुसैन को फांसी दी थी. अल-दौरी की तरह जॉर्डन के एक लीडर खलील अतीह ने भी अपने फेसबुक पेज पर जज रहमान को फांसी देने का दावा किया. हालांकि इराकी सरकार ने इस बात की ना तो पुष्टि की है और ना ही इस बात से इनकार किया है. कुछ समय पहले एक अंग्रेजी अखबार इंटरनैशनल बिजनेस टाइम्स ने जज रऊफ अब्दुल रहमान के अगवा होने की बात का दावा किया था. इसके अलावा 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने आईएसआईएस के अचानक सर उठाने के पीछे अल-दौरी का ही हाथ बताया था. गौरतलब है कि अल-दौरी 2003 इराकी कमांड काउंसिल के डिप्टी चेयरमैन थे. इसके बाद वे 2007 में इराक में बाथ पार्टी के लीडर बनाए गए.


कौन थे जज रहमान

जज रहमान एक कुर्द थे और वर्ष 2007 में जज रऊफ अब्दुल रहमान ने सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा सुनाई थी. इससे पहले यह केस राज़गार अमीन के पास था. एक अंग्रेजी अखबार'डेली मेल' के अनुसार जज रहमान ने 2007 में सद्दाम को फांसी की सजा सुनाने के बाद ब्रिटेन से शरण मांगी थी. हालांकि इस बात की ऑफिशियल जानकारी नही है लेकिन सद्दाम को मौत देने के बाद जज रहमान को पक्षपात के आरोपों को झेलना पड़ा था. जज रहमान ने किया था पक्षपातसद्दाम को मौत की सजा सुनाने के बाद ऐसा कहा गया कि जज रहमान ने हलबजा में होने के कारण पक्षपातपूर्ण फैसला सुनाया था. दरअसल 16 मार्च 1988 को इरान-इराक युद्ध के दौरान इराकी सैनिकों ने कुर्द शहर हलबजा पर रसायनिक बम गिराए थे जिसमें अनुमानित रूप से 3200 से 5000 लोगों मरे थे. इसके साथ ही घायल होनें वालों की संख्या तकरीबन 20 हजार थी. ऐसा माना जाता है कि जज रहमान ने इस हमले में अपने कई रिलेटिव्स को खो दिया था.

Posted By: Prabha Punj Mishra