लड़खड़ाते हुए ही सही वे बिस्तर से उठकर चलने लगे थे. थरथराते-तुतलाते ही सही वे दो और दो चार बताने लगे थे. हाथ नहीं पर वो पेंसिल और रंग पकड़ गंवई और मुफलिसी भरी जिंदगी के कैनवास में रंग भरने लगे थे. उनके होठों पर मुस्कान छाने लगी थी.


लेकिन अब ये सब कुछ थम सा गया लगता है. उनकी आंखे शून्य को निहारती हैं. दरअसल अब उनकी दीदी आती नहीं. आती भी हैं, तो अपनी मायूसी लेकर. मिले और पल भर में चल दिए. ये कहानी है झारखंड के गांवों-क़स्बों में, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले विकलांग बच्चों की.समावेशी शिक्षा अभियान के तहत सरकार की गृह आधारित शिक्षा योजना में उन्हें शामिल किया गया था.लेकिन यह योजना रोक दिए जाने से राज्य भर में आठ हज़ार से अधिक विकलांग बच्चों का भविष्य मुश्किलों में पड़ गया है.इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए तीन हजार के मानदेय पर पूरे राज्य में 1100 से अधिक केयर गिवर नियुक्त किए गए थे.
ये लोग विकलांग बच्चों को दिनचर्या व साफ-सफाई के बारे में बताने के साथ उन्हें प्रारंभिक शिक्षा देने, उनकी मनःस्थिति व परिस्थितियों के अनुरूप स्कूलों में नामांकन कराने, खेलकूद प्रतियोगिता में भाग दिलाने व प्रोत्साहन राशि दिलाने में सक्रिय भूमिका अदा करते थे.इनके अलावा घर वालों को भी बच्चों की देखरेख के लिए समझाते थे. इसके लिए लाखों ख़र्च कर उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया था.योजना रोकने का असर


सूरज की मां कांति देवी बताती हैं कि वे लोग बीपीएल परिवार हैं. रोज़ी-रोजगार की चिंता रहती है. उनके दो बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं. पर सूरज जन्म से ही विकलांग हैं.सरकार से कोई मदद तो मिलती नहीं. अब केयर गिवर लोग भी आना बंद कर दिए हैं. इससे परेशानी बढ़ी है.बेटे के भविष्य के बारे में सोचकर उनकी आंखों से आंसू टपक पड़ते है.इस कार्यक्रम के सरकारी जिला समन्वयक अमरेंद्र का कहना है कि सिर्फ रांची जि़ले में छह से चौदह साल के आठ सौ बच्चे इस कार्यक्रम से जुड़े थे. इस योजना के सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं. लेकिन केंद्र सरकार से बजटीय प्रावधान नहीं होने कारण इसे अभी स्थगित कर दिया गया है.इस बीच उसी गांव के केयर गिवर जमील अंसारी भी पहुंचते हैं. सूरज उन्हें देखकर खुश हो जाते हैं.जमील बताते हैं कि झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद ने भारत सरकार से बजट नहीं मिलने की वजह बताते हुए इस योजना पर रोक लग दी है. इस बाबत पिछले 24 अप्रैल को पत्र जारी किया गया है.उन लोगों ने सरकारी अधिकारियों और राज्य के मानव संसाधन विकास मंत्री से मिलकर गुहार भी लगाई है कि इस कार्यक्रम को रोका नहीं जाए, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है.दीदी क्यों नहीं आतीं

सूरज अपनी माँ कांडी देवी के साथबोकारो जि़ले के एक गांव में केयर गिवर का काम करने वाले राकेश पांडेय बताते हैं कि एक कल्याणकारी योजना स्थगित कर दी गई. विकलांग बच्चों का भविष्य तो संकट में पड़ ही गया, वे लोग भी बेरोज़गार हो गए.इस योजना से जुड़े राज्य समन्वयक डॉ अभिनव बताते हैं कि वे लोग उम्मीद कर रहे हैं कि केंद्र सरकार से बजट मिलेगा. तब योजना चालू हो सकेगी. राज्य की तरफ से प्रस्ताव भी तैयार कर भेजा गया है.योजना रोक दिए जाने से विकलांग बच्चों की जिंदगी प्रभावित होगी, इस सवाल पर वे कहते हैं जाहिर है यह कार्यक्रम विकलांग बच्चों की जिंदगी हद तक संवारने में कारगर था.अभिनव बताते हैं कि समावेशी शिक्षा योजना से आठ हजार बच्चे जुड़े थे . इनमें 3500 बहु विकलांग बच्चों की पहचान कर उन्हें केयर दिया जा रहा था.

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari