सैम्युअल मोर्स व मोर्स कोड से जुड़े इन रोचक तथ्यों को जान आप भी चौंक जाएंगे
यहां से शुरू हुआ सफर
1836 की शुरुआत में सैम्युअल मोर्स, भौतिक विज्ञानी जोसेफ हेनरी और अलफ्रेड वेल ने एक ऐसा सिस्टम विकसित किया जो इलेक्ट्रिक करेंट की पल्स को उन तारों के जरिए, जो इलेक्ट्रोमेग्नेट को कंट्रोल करता है, वहां तक पहुंचाता है जहां टेलीग्राफ सिस्टम के पहुंचने का अंतिम छोर है. इन पल्स पर प्राकृतिक भाषा को ट्रासंमीट करने के लिए एक कोड और दोनों के बीच शांति की जरूरत पड़ती है. इसको ध्यान में रखते हुए मोर्स ने उस समय मोर्स कोड के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय अग्रदूत को विकसित किया. मोर्स कोड एक सहायक तकनीक के रूप में नियोजित किया गया, उन लोगों की मदद करने के लिए जो आसानी से दूर बैठे अपने परिजनों से आसानी से संपर्क नहीं साध सकते.
इन दो तरीकों से सिखाया
मोर्स कोड ने सामान्य तौर पर दो तरीकों का उपयोग कर सिखाया. इनका नाम था फार्नसवर्थ मैथड और कोच मैथड. फार्नसवर्थ मैथड में यूजर को पत्रों को भेजना, उन्हें प्राप्त करना और अपनी पूरी लक्ष्य गति से अन्य प्रतीकों को पाना भी सिखाया जाता है. कोच मैथड में आउटसेट से पूरी लक्ष्य गति का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसकी शुरुआत सिर्फ दो अक्षरों के साथ होती है. जब वो दो अक्षर युक्त तार मिलते हैं, तो इन दोनों अक्षरों को 90 प्रतिशत सटीकता के साथ कॉपी किया जा सकता है. इसमें एक अतिरिक्त चरित्र जोड़ा जाता है और ये तब तक चलता है जब तक पूरे चरित्र सेट में महारत न हासिल हो जाए. मोर्स कोड को तात्कालिक विधियों के माध्यम से भी भेजा जा सकता है, जिसकी चाभी को इमरजेंसी के दौरान बंद या खोला भी जा सकता है. सबसे आम आपात संकेत है SOS और तीन डॉट्स, तीन डैश और तीन डॉट्स. यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संधि द्वारा मान्यता प्राप्त हैं.
Courtesy by Mid Day