'अपाहिज' कहें या 'विकलांग'?
भारत सरकार ने 1995 में विकलांग जनों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए जब क़ानून बनाया तो उसे नाम दिया, ‘निशक्तजन अधिनियम 1995’।पर समय के साथ विकलांग जनों ने इसपर आपत्ति जताई और अब नए क़ानून में वो ‘निशक्त’ नहीं ‘विकलांग जन’ कहलाना चाहते हैं।पर आम बोलचाल की भाषा में विकलांग व्यक्तियों को उनकी विकलांगता से जुड़े कई अभद्र शब्दों से संबोधित किया जाता है, जबकि इनके बेहतर और सम्मानजनक विकल्प मौजूद हैं।
सुनने और बोलने से जुड़ी विकलांगता को अब ‘मूक-बधिर’ कहकर संबोधित किया जाना सही माना जाता है।
पर विकलांग जन इसे सही नहीं मानते और कहते हैं कि ये अहसान जताने जैसा है। उनके मुताबिक़ ‘विकलांग जन’ सम्मानजनक भी है और उनकी शारीरिक स्थिति को स्पष्ट भी करता है।भारत में 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक़ देश में ढाई करोड़ से ज़्यादा विकलांग जन हैं. इस जनगणना में देखने, सुनने, बोलने, चलने-फिरने, मानसिक बीमारी समेत आठ श्रेणियों की विकलांगता को शामिल किया गया है।